hindisamay head


अ+ अ-

लघुकथाएँ

सच अपने हिसाब से

पद्मजा शर्मा


'नंदिनी, आज मैं केस जीत गया।'

'कौन सा?'

'वही दुलाराम वाला। जिसकी बीवी ने दहेज प्रताड़ना का इल्जाम लगाया था?'

'हाँ, पर उस केस में तो जान ही नहीं थी। पत्नी केस जीती हुई थी। वह सच थी। वकील भी नामी था। यह उल्टी गंगा कैसे बही?'

'अरे यार, वकील के नामी और पक्ष के सच्चे होने मात्र से ही क्या हो जाता। प्रजेंटेशन और तिकड़म की भी तो अपनी वकत होती है। फिर समय भी कितना बदल गया। सच के साथ हमारी अप्रोच भी बदलनी चाहिए।'

'वो कैसे?'

'नंदिनी, कुछ लोग सच्चाई को प्रिय, पुराने कपड़े की तरह पकड़े रहते हैं, छोड़ते ही नहीं। वो यह नहीं जानते कि केस जीतने के लिए सच का होना जरूरी नहीं, सच का दिखना जरूरी है।'

'साफ-साफ कहो न केस जीतने के लिए तुम झूठ बोलते हो।'

'नहीं नंदिनी, मैं झूठ नहीं बोलता। बस सच को अपने हिसाब से मोड़ लेता हूँ।'


End Text   End Text    End Text