हमारे हरि हारिल की लकरी। मन क्रम वचन नंद-नंदन उर, यह दृढ़ करि पकरी। जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि, कान्ह-कान्ह जकरी। सुनत जोग लागत है ऐसौ, ज्यौं करुई ककरी। सु तौ ब्याधि हमकौं लै आए, देखी सुनी न करी। यह तौ 'सूर' तिनहिं लै सौंपौ, जिनके मन चकरी।।
हिंदी समय में सूरदास की रचनाएँ