निरगुन कौन देश कौ बासी। मधुकर कहि समुझाइ सौंह दै, बूझतिं साँच न हाँसी। को है जनक, कौन है जननी, कौन नारि, को दासी। कैसौ बरन, भेष है कैसौ, केहि रस में अभिलाषी। पावैगो पुनि कियौ आपनौ जो रे करैगौ गाँसी। सुनत मौन ह्वै रह्यौ बावरौ सूर सबै मति नासी।।
हिंदी समय में सूरदास की रचनाएँ