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कविता

ऊधौ मन न भए दस बीस

सूरदास


ऊधौ मन न भए दस बीस।
एक हुतौ सो गयौ स्याम सँग, को अवराधै ईस।
इंद्री सिथिल भईं केसव बिनु, जथा देह बिनु सीस।
आसा लागि रहति तन स्वासा, जीवहिं कोटि बरीस।
तुम तौ सखा स्यामसुंदर के, सकल जोग के ईस।
सूर हमारैं नंदनंदन बिनु, और नहीं जगदीस।।


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