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कविता

नाथ अनाथन की सुधि लीजै

सूरदास


नाथ अनाथन की सुधि लीजै।
गोपी, ग्वाल, गाइ, गौसुत सब, दीन मलीन दिनहिं दिन छीजैं।
नैननि जलधारा बाढ़ी अति, बूड़त ब्रज किन कर गहि लीजै।
इतनी बिनती सुनहु हमारी, बारक हूँ पतिया लिखि दीजै।
चरन कमल-दरसन मव नौका करुनासिंधु जगत जसु लीजै।
सूरदास प्रभु आस मिलन की एक बार आवन ब्रज कीजै।।


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