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कविता

ऊधौ मन नहिं हाथ हमारैं

सूरदास


ऊधौ मन नहिं हाथ हमारैं।
रथ चढ़ाइ हरि संग गए लै, मथुरा जबहिं सिधारे।
नातरु कहा जोग हम छाँड़हि, अति रुचि कै तुम ल्याए।
हम तौ झँखतिं स्याम की करनी, मन लै जोग पठाए।
अजहूँ मन अपनौ हम पावैं, तुम तैं होइ तौ होइ।
सूर सपथ हमैं कोटि तिहारी, कही करैंगी सोइ।


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