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कविता

बिलग हम मानैं ऊधौ काकौ

सूरदास


बिलग हम मानैं ऊधौ काकौ।
तरसत रहे बसुदेव देवकी, नहिं हित मातु पिता कौ।
काके मातु पिता कौ काकौ, दूध पियौ हरि जाकौ।
नंद जसोदा लाड़ लड़ायौ, नाहिं भयौ हरि ताकौ।
कहियौ जाइ बनाइ बात यह, को हित है अबला कौ।
सूरदास प्रभु प्रीति है कासौं, कुटिल मीत कुबिजा कौ।।


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