आयौ घोष बड़ौ ब्यौपारी।
खेप लादि गुरु ज्ञान जोग की, ब्रज मैं आनि उतारी।
फाटक दै कै हाटक माँगत, भोरौ निपट सुधारी।
धुरही तैं खौटौ खायौ है, लिये फिरत सिर भारी।
इनकैं कहे कौन डहकावे, ऐसी कौन अनारी।
अपनौं दूध छाँड़ि को पीवै, खारे कूप कौ बारी।
ऊधौ जाहु सबारैं ह्याँ तै, बेगि गहरु जनि लावहु।
मुख मागौ पैहौ सूरज प्रभु, साहुहिं आनि दिखावहु।।