भिनसार हुआ, उससे पहले
दादा का सीताराम शुरू
कितने खेतों में कहाँ-कहाँ
गिनना वो सारा काम शुरू
'धानेपुर' में कितना ओझास,
पूरे खेतों में पसरी है
अनगिनत घास
है बहुत... काम,
हरमुनिया सा पत्थर पकड़े
सरगम जैसा वो पंहट रहे
फरुहा, कुदार, हँसिया, खुरपा
सब चमक गए
दादा अनमुन्है निकल पड़े
दाना-पानी, खाना-पीना
सब वहीं हुआ,
बैलों के माफिक जुटे रहे
दुपहरिया तक,
घर लौटे तो कुछ परेशान
सारी थकान...
गुनगुनी धूप में सेंक लिए,
अगले पाली में कौन खेत
अगले पाली में कौन मेड़
सोते-सोते ही सोच लिए
खेती-बारी में जिसका देखो यही हाल
खटते रहते हैं, साल-साल
फिर भी बेहाल,
बचवा की फीस, रजाई भी
अम्मा का तेल, दवाई भी
जुट न पाया,
कट गई जिंदगी
दाल-भात तरकारी में...!
ये ढोल दूर से देख रहे हैं
लोग-बाग,
नजदीक पहुँचकर सूँघे तो
कुछ पता चले,
खुशियों का कितना है अकाल...
ये मकड़जाल,
जिसमें फँसकर सब नाच रहे
चाँदनी रात को दिन समझे
कितने किसान...
करते प्रयास
फिर भी निराश
ऐसी खेती में लगे आग!
भूखे मरते थे पहले भी
भूखे मरते हैं सभी आज
क्या और कहूँ?