hindisamay head


अ+ अ-

कविता

ये सब भी इसी देश के वासी हैं

संदीप तिवारी


उन्हें नहीं पता कि
कहाँ हो रहे हैं युद्ध,
कहाँ चल रही है गोली
और कहाँ से आ रही है बोली
शाम को खेतों की और जा रही महिलाएँ
मगन थीं अपने-अपने दिनचर्या में,
बाजार से लौट रहे काका के झोले में
भरी थी सिर्फ एक किलो मूली
जिसका साग भी बनेगा और सलाद भी।
भाई अभी लौटे थे
धान का खेत देख कर,
कुछ उदास से थे!
शायद फसल इस बार मन की नहीं है
पिताजी बाजार गए हैं
लौटेंगे देर रात तक...
और माँ भुनभुनाएगी
कि कहाँ थे?
भला ये भी कोई घूमने का 'बखत' है...
ये सब भी इसी देश के वासी हैं
अपने फटेहाल औ उबाऊ जिंदगी के मालिक,
गोलियों की आवाज
यहाँ तक नहीं पहुँचती होगी शायद!


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में संदीप तिवारी की रचनाएँ