अकेला आदमी ढोता है कई आदमियों के दुख, अकेला आदमी रोता है कई आदमियों के आँसू, पर कई आदमी मिलकर भी नहीं समझ पाते अकेले आदमी का दर्द!
हिंदी समय में संदीप तिवारी की रचनाएँ