अमरता स्वप्न है
पर देखता है मन
कितना बली हो
मरता एक दिन।
जीवन सिंधु में डूबे
जो तर गए।
मिला जीवन जीने को
मानव जिएगा
मौत से डर किसे
सुकरात विष को पिएगा।
कल के अतिथि
आज अपने घर गए।
समय रुकता नहीं
सागर की लहर सा
जल में बुलबुला मनु
फिर अमर कैसा।
सिंधु नाविक क्या पता
किधर गए।