राह चलते थक गए हैं पाँव
दूर अब भी लग रही मंजिल।
रंगीन सपने आँख में पाले
फुसलाते रहे निर्मम जमाने की तरह
मीत ललचाते रहे मृदुल फूलों से
मगर निकले कंटकों की तरह।
मूर्ति पर आँख के मोती लुटा
आखिर में क्या हुआ हासिल।
चलने के सिवा चारा नहीं
इसलिए हमराहियों चलते चलो
जड़ता के पहाड़ों पर चढ़ो
हँसते प्यार की वादियों में गलों।
दुनिया पहले से अधिक निर्मम
जीवन राह पहले से अधिक पंकिल।
पास अरमानों के सिवा कुछ नही
उन्हें भी जीने का अधिकार है
अपनी हड्डियों से उगाते जो फसल
पेट उन के भरें उन्हें अधिकार है।
यह जिएगी गुलाबों की फसल
चाहे मौसम हो अधिक कातिल।