1965 में वैज्ञानिकों को उन विकिरणों का पता चला जो हमारी आकाशगंगा के बाहर से
आ रहे हैं। इससे यह साबित हो गया कि ब्रह्मांड एक समय में बहुत गर्म था। इस
तथ्य से महाविस्फोट के सिद्धांत को समर्थन मिला। उसी वर्ष में स्टीफन हॉकिंग
ने एक लेख लिखा जिसका शीर्षक था "विस्तारित होते ब्रह्मांडों के गुण"। इस लेख
में उन्होंने अपने विचार प्रस्तुत किए कि ब्रह्मांड की शुरुआत एक बिंदु से
कैसे हुई? उन्होंने इस पर भी चर्चा की कि एक बड़े धमाके से शुरू हुए ब्रह्मांड
के क्या गुण होने चाहिए, जिसमे उन्होंने सूक्ष्मतरंगीय विकिरण की उपस्थिति को
महत्व दिया। इससे यह साबित हुआ कि ब्रह्मांड की एक विस्फोटक शुरुआत हुई और उस
समय उसका तापमान बहुत ज्यादा था।
हॉकिंग ने इस सिद्धांत पर काम किया कि कैसे ब्रह्मांड की शुरुआत हुई और समय के
साथ उसका विस्तार कैसे हो रहा था? 1970 में उन्हें ब्रह्मांड की शुरुआत का
अध्ययन करने का एक तरीका समझ गया। इस अध्ययन में काले छिद्रों की प्रमुख
भूमिका थी। ये काले छिद्र अंतरिक्ष के रहस्यमय और अँधेरे स्थान हैं। इन
स्थानों पर गुरुत्वाकर्षण बहुत शक्तिशाली होता है। जो भी पदार्थ इन काले
छिद्रों के बहुत करीब आता है वह इन छिद्रों के केंद्र में निचुड़ जाता है।
वैज्ञानिकों का यह मानना है कि जब कोई तारा मरता है तो कई काले छिद्र बनते
हैं। यह तारा एक घने बिंदु में निपातावस्था को प्राप्त होता है और यही बिंदु
काले छिद्र का केंद्र बन जाती है। कुछ काले छिद्र छोटे होते है, अन्य विशाल।
वैज्ञानिक इन काले छिद्रों का अध्ययन उनके किनारे देखकर कर सकते हैं। काले
छिद्रों के किनारे वह जगह हैं जहाँ प्रकाश और वायुरूप द्रव्यों को देखा जा
सकता है। काले छिद्रों के किनारे को वाक्या क्षितिज कहा जाता है। काले छिद्र
के अंदर स्थित किसी भी कण को अगर उस काले छिद्र से बाहर निकलना है तो उसकी
रफ्तार प्रकाश की गति से भी तेज होनी चाहिए। लेकिन प्रकाश की गति से ज्यादा
गति किसी भी चीज की नहीं हो सकती है। इन काले छिद्रों से प्रकाश भी पलायन नहीं
कर सकता है, इसीलिए ये काले छिद्र अँधेरे हो जाते हैं। हॉकिंग को एहसास हुआ कि
काले छिद्र कभी छोटे नहीं हो सकते। वे केवल बड़े हो सकते हैं। इसका कारण यह है
कि जो भी कण काले छिद्र के अंदर हैं, वे उसकी गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण कभी
बाहर नहीं आ सकते। तब हॉकिंग ने वाक्या क्षितिज पर उपस्थित कणों के बारे में
गौर किया। उन कणों का क्या हुआ?
हॉकिंग ने अपना ध्यान इन छोटे कणों पर केंद्रित किया। बड़े ब्रह्मांड को समझने
के लिए, भौतिकी वैज्ञानिक छोटे से छोटे कणों को देखते हैं। ये जोड़ीदार कण
अंतरिक्ष में मौजूद होते हैं। इस जोड़ी का एक हिस्सा ऋणात्मक आवेश होता है और
दूसरा सकारात्मक आवेश। ये जोड़ीदार कण कुछ समय की अवधि के लिए एक साथ रहते हैं
और फिर अलग हो जाते हैं। अलग होने के बाद आपस में टकराकर ये कण एक-दूसरे को
नष्ट कर देते हैं। हॉकिंग का मानना था कि इनमें से कई कण जोड़े काले छिद्रों
के वाक्या क्षितिज पर मौजूद रहते हैं। जब वे अलग हो जाते हैं, तो ऋणात्मक कण
काले छिद्र में जाता है और सकारात्मक कण बाहर पलायन कर लेता है। इस सकारात्मक
पलायन का मतलब था कि काले छिद्र ऊर्जा उत्सर्जित करते हैं। इसी ऊर्जा को
हॉकिंग विकिरण के रूप में जाना जाने लगा।
हॉकिंग ने 1974 में अपने इस विकिरण सिद्धांत को "काले छिद्रों के विस्फोट?"
नामक लेख से प्रकाशित किया। हॉकिंग विकिरण की खोज ने हमेशा के लिए काले
छिद्रों के अध्ययन को बदल दिया। इस सिद्वांत से स्टीफन हॉकिंग यह दिखाने में
सक्षम हो गए कि ब्रह्मांड की शुरुआत एक ही बिंदु से हुई है।