किसने बनाया ये दस्तूर कि घास के मैदानों में यूँ ही मर-खप जाए इनसान?
	किसके कहने से खेली जाती है गलियों में खून की होली,
	कौन है जो बागीचों को भर देता है हड्डियों के ढेर से,
	किसके चलते बिखरा है इन पहाड़ियों पर खून, और मांस, और मज्जा,
	किसने बनाया ये दस्तूर ?
	किसने बनाया यह कानून कि घर-घर से उठे मौत की डोलियाँ?
	किसके कहने पर कत्ल की जाती हैं लोगों की टोलियाँ,
	किसके चलते हर झाड़ी से झाँकने लगती है मौत,
	सूखी हुई पत्तियों के बीच किसने लगाया लाशों का ढेर,
	किसने बनाया यह दस्तूर?
	जो जीवित बच पाएँगे, वो मानेंगे कि शांति भी होती है कोई चीज,
	पुरानी चीजों को जस का तस पाकर, वे फिर से जानेंगे उसे जिससे उनका नाता था,
	बागीचे में टहलना, अलाव के पास बैठ अलसाना,
	भोर की शांति का हिस्सा होना, ओस में सपने बुनना,
	(लेकिन) जो लौट सकेंगे...
	जो जीवित लौटेंगे वो फिर से मैदानों को जोतेंगे,
	साफ दिलवाले घोड़ों की नाल से जुते हल की मूठ थामेंगे,
	कुछ मैदानों में सेब और वादियों में फूल उगाएँगे,
	कुछ गर्मियों के दिनों में गलियों में यू ही गप लड़ाएँगे,
	पर वही जो लौट पाएँगे
	लेकिन, किसने बनाया यह कानून ? पेड़ भी फुसफुसाते हुए उससे कहेंगे :
	देखो, हमारी छाल पर पड़े खून के इन छींटों को देखो
	हरे-भरे मैदानों में चलते समय उसे हड्डियों की चरमराहट सुनाई देगी
	अँधेरी खामोश गलियों में मांस से रिक्त चेहरे फुसफुसाएँगे
	किसने बनाया ये कानून?
	किसने बनाया ये कानून?
	पूरी घाटी में, बागीचे में, बाड़े में, भरे-पूरे मोहल्ले में
	भरी दोपहर पहाड़ियों पर उसको लोगों की कराहें सुनाई पड़ेंगी,
	उसके गालों पर लोगों की अंतिम साँसें उखड़ती हुई महसूस होंगी,
	हाँ, वो जिसने यह कानून बनाया,
	हाँ वो जिसने यह कानून बनाया,
	हाँ, वो जिसने यह कानून बनाया, वो भटकेगा सिर्फ अपनी मौत के साथ।
	
	
		(ब्रिटेन में जन्मे (1889-1916) की कविताओं का प्रकाशन उनकी मृत्यु के बाद
		हुआ। लिजवी ने अपना कैरियर एक स्तंभकार के तौर पर शुरू किया था लेकिन
		प्रथम विश्वयुद्ध में उनको मजबूरन सेना का हिस्सा बनना पड़ा। वे सैनिक थे।
		युद्ध की निर्थकता को उन्होंने बखूबी महसूस किया। एक सैनिक से ज्यादा
		शांति और जीवन-जीने की आस भला और किसको हो सकती है। यही उनकी कविताओं का
		विषय है। अक्टूबर 1916 को युद्ध के दौरान उनको सीने में गोली लग गई और
		अगले दिन उनकी मौत हो गई। उसके बाद उनके कमरे की सफाई के दौरान तमाम चीजों
		के साथ ये कविता मिली जिसका बाद में प्रकाशन हुआ।)