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कविता

लोग

भारती गोरे


चारों ओर मुस्कुराते लोग
अपने अनजानपन में खुश लोग
अपनी अमीरी में सीना फुलाए लोग
अपनी कामयाबी के गुरूर से भरे-भरे लोग
अपनी खुशहाली के मुगालते में
दूसरे की बेहाली पर नपुंसक सहानुभूति जताते लोग
अपनी सुकून भरी जिंदगी पर
मन ही मन राहत पाते लोग
ऐसे लोग
वैसे लोग
अपने में खोए लोग
खुद से बेगाने लोग
सुख से सुखी लोग
दुख से दुखी लोग
जिधर देखूँ, लोग ही लोग
मन कर रहा है
ओढ़ लूँ कफन-सी उजली चादर
सिर से लेकर पैर तक
और
चौंका दूँ इन्हें
डरा दूँ इन्हें
कँपकँपा दूँ इन्हें
फिर देखूँ यह नकाब ओढ़े लोग
फक्क चेहरे के मुखौटा धारी लोग


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