hindisamay head


अ+ अ-

कविता

बदलाव

डॉ. भारत खुशालानी


पतझड़ के पत्तों की तरह
लोग भी बदल जाते हैं
हरे हरे रिश्ते
लाल और पीले हो जाते हैं।
बैठक करने वाले भी अब
बिरले ही मिलते हैं
मजबूत गठबंधन पल भर में
ढीले हो जाते हैं।
सुगंधित फूल से रिश्ते
दुर्गंध देने लगते हैं
मल से भरे जल की तरह
बसीले हो जाते हैं।
जरा सी बात पर अब लोग
चोट खा जाते हैं
और गहरे घावों की तरह
नीले हो जाते हैं।
रास्ते साफ और सीधे हैं
अगर हम उनके साथ चलते हैं
वरना चिकने रास्ते भी
कंकरीले हो जाते हैं।
फूलों से नाजुक संबंध
गुलाब के बदले
उनके पौधों में लगे काँटों की तरह
कंटीले हो जाते हैं।
राज खुलने पर
कल तक जो हाथ मिलाते थे
उनके रिश्ते भी
बर्फीले हो जाते हैं।


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में डॉ. भारत खुशालानी की रचनाएँ