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बाल साहित्य

लू लू की बातें

दिविक रमेश


एक था मेंढक। बड़ा ही फुर्तीला। चलता तो मटक मटक कर। एक दिन लू लू ने उसे देखा तो देखता ही रह गया। चुपचाप देखते-देखते लू लू न जाने कहाँ खो गया। मेंढक तो गायब हो गया पर उसे लगा कि वह मेंढक बन गया। फिर क्या था। चलने लगा वह भी मेंढक की तरह। फुदक-फुदक कर। मटक-मटक कर। उसे बड़ा मजा आ रहा था।

उसने सोचा जब मेंढक चलता है तो वह क्या सोचता है। बहुत सोचा, बहुत सोचा। पर उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि चलते समय मेंढक क्या सोचता होगा। उसे बुरा लग रहा था। मजा भी बिगड़ रहा था। वह बार-बार सोचता कि वह सोच क्यों नहीं पा रहा। तभी उसे सूझा कि माँ से ही चल कर पूछ लूँ। उसे अपनी माँ अच्छी भी तो बहुत लगती है न। वह हमेशा आश्चर्य करता - "माँ को सबकुछ कैसे पता होता है!"

"माँ, माँ! ओ माँ!" - लू लू लगभग चिल्लाते हुए वहाँ पहुँच गया जहाँ माँ काम कर रही थी। पास जाकर बोला - "माँ! माँ! चलते समय मेंढक क्या सोचता है'?"

"वही सोचता है जो तू सोचता है बिट्टू!" - माँ ने कहा और काम करती रही। लू लू चुप। उसे लगा कि वह माँ की बात समझा ही नहीं। "कभी-कभी माँ की बात समझ में क्यों नहीं आती?" - लू लू ने सोचा। फिर बोला - "माँ! कभी-कभी आपकी बात मुझे समझ में क्यों नहीं आती?" लू लू की बात सुनकर माँ को उस पर बहुत प्यार आया। मुस्कुरा कर बोली - "इसलिए कि तू अभी बहुत छोटा है।" लू लू को माँ की यह बात अच्छी नहीं लगी। बोला - "नहीं माँ, मैं छोटा नहीं हूँ। मैं तो रोज दूध पीता हूँ। रोटी खाता हूँ। सब्जी और दाल खाता हूँ। फल भी खाता हूँ। और स्कूल भी तो जाता हूँ। मैं तो स्ट्रोंग हूँ।" लू लू की बातें सुनकर माँ को बहुत मजा आया। काम छोड़कर उसे अपने पास खींच लिया और उसका गाल चूम लिया। लू लू ने फिर सोचा - "माँ को प्यार आता है तो वह गाल क्यों चूमती है?" पर चुप रहा। माँ बोली - "अरे हाँ, मेरा लू लू तो सचमुच बड़ा हो गया है। स्ट्रोंग भी। जल्दी ही और भी बड़ा हो जाएगा। जो भी अच्छी-अच्छी चीजें देती हूँ उन्हें खुशी-खुशी खाता जो है।" लू लू को अब अच्छा लग रहा था। बोला - "तो माँ बताओ न चलते समय मेंढक क्या सोचता है?" "कहा न बिट्टू वही सोचता है जो तुम चलते हुए सोचते हो।" लू लू फिर चुप। पर इस बार बात कुछ पल्ले पड़ गई थी। बोला - "पर माँ, चलते हुए में क्या सोचता हूँ?"

माँ को तो हँसी ही आ गई। कहा - "अरे यह तो तू ही बताएगा न बिट्टू। तुम्हारे मन की मैं क्या जानूँ।" लू लू ने माँ को अचंभे से देखा। उसे माँ की आखिरी बात पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। उसने सोचा, माँ तो सब जानती है। सब कुछ। जरूर माँ मुझे बताना नहीं चाहती। या फिर उल्लू बना रही है। रूठ कर बोला - "माँ मैं आपसे बात नहीं करूँगा। नहीं तो बताओ, चलते समय मैं क्या सोचता हूँ?" माँ समझ गई थी कि अब लू लू मानेगा नहीं। बोली - "तू सोचता है कि तेरी माँ कितनी अच्छी है। उन्हें सबकुछ पता है। वह तुझसे बहुत प्यार करती है। तेरा ध्यान रखती है। तुझे भी माँ से कितना प्यार है! हमेशा माँ के पास रहेगा। ऐसा ही सब।"

लू लू ने कहा, "हाँ माँ, मैं तो सचमुच यही सोचता हूँ। पर आपको कैसे पता चला?" माँ ने कहा, "क्योंकि मैं सब जानती हूँ।" "अच्छा माँ! मेंढक की माँ भी तो सबकुछ जानती होगी। वह् भी तो जानती होगी न कि चलते हुए मेंढक क्या सोचता होगा।" - लू लू ने कहा।

"हाँ, हाँ हर माँ अपने बच्चे के बारे में जानती है। मेंढक की माँ भी।" - माँ ने बताया।

लू लू थोड़ी देर सोचता रहा। उसे यह सोचकर मजा आया कि मेंढक की माँ भी मेंढक को बहुत प्यार करती है। उसका ध्यान रखती है। और मेंढक भी अपनी माँ से बहुत प्यार करता है। उसकी माँ प्यार से मेंढक के गाल भी चूमती है। प्यार करना कितना अच्छा होता है न!

लू लू की माँ ने देखा कि लू लू चुपचाप कुछ सोच रहा है। पूछ ही लिया - "अरे लू लू क्या सोचने लगा?" लू लू जैसे सपने से जागा। माँ की ओर देखा। जल्दी ही उसकी आँखों में नन्हीं सी शरारत नाचने लगी। बोला, "मैं क्यों बताऊँ माँ? आप तो सब जानती हैं।" यह कहते-कहते लू लू को ध्यान आया कि उसे तो अभी मेंढक को देखना है। चलते हुए। फुदक-फुदक कर। मटक-मटक कर। सोचते हुए। और वह घर से बाहर दौड़ गया।

माँ थोड़ी हैरान हुई। और फिर हँस कर रह गई। अभी काम भी तो काफी पड़ा था न। उसी में लग गई। पर इतना जरूर सोचा, "मेरे लू लू की बातें कितनी मजेदार होती हैं न?"


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