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कविता

क्षमा कीजिए हजरत

काज़ी नज़रुल इस्लाम

अनुवाद - सुलोचना


आपकी वाणी को नहीं किया ग्रहण
क्षमा कीजिए हजरत
भूल गया हूँ आपके आदर्श
आपका दिखाया हुआ पथ
क्षमा कीजिए हजरत।
विलास वैभव को रौंदा है पाँव तले
धूल समान आपने प्रभु
आपने नहीं चाहा कि हम बनें
बादशाह, नवाब कभू।
इस धरणी की धन संपदा
सभी का है उस पर समान अधिकार,
आपने कहा था धरती पर हैं सब
समान पुत्रवत
क्षमा कीजिए हजरत।

आपके धर्म में नास्तिकों से
आप घृणा नहीं करते,
आपने उनकी की है सेवा
आश्रय दिया उन्हें घर में

भिन्न धर्मियों के पूजा मंदिर
तोड़ने का आदेश नहीं दिया, हे वीर!
हम आजकल सहन
नहीं कर पाते दूसरों का मत
क्षमा कीजिए हजरत।

नहीं चाहा आपने कि हो धर्म के नाम पर
ग्लानिकर हत्या-जीवन हानि
तलवार आपने नहीं दिया हाथ में
दी है अमर वाणी
हमने भूल कर आपकी उदारता
बढ़ा ली है धर्मान्धता,
जन्नत से नहीं झरती है अब
तभी आपकी रहमत
क्षमा कीजिए हजरत।

आपकी वाणी को नहीं किया ग्रहण
क्षमा कीजिए हजरत
भूल गया हूँ आपके आदर्श
आपका दिखाया हुआ पथ
क्षमा कीजिए हजरत।


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