ओ मेरी रानी ! हार मानता हूँ आज अंततः तुमसे
	मेरा विजय-केतन लूट गया आकर तुम्हारे चरणों के नीचे।
	मेरी समरजयी अमर तलवार
	हर रोज थक रही है और हो रही है भारी,
	अब ये भार तुम्हें सौंप कर हारूँ
	इस हार माने हुए हार को तुम्हारे केश में सजाऊँ।
	ओ जीवन-देवी
	मुझे देख जब तुमने बहाया आँखों का जल,
	आज विश्वजयी के विपुल देवालय में आंदोलित है वह जल!
	आज विद्रोही के इस रक्त-रथ के ऊपर,
	विजयनी ! उड़ता है तुम्हारा नीलांबरी आँचल,
	जितने तीर है मेरे, आज से सब तुम्हारे, तुम्हारी माला उनका तरकश,
	मैं आज हुआ विजयी तुम्हारे नयन जल में बहकर।