जीवन एक नदी है चौड़े पाटों वाली सफलता और असफलता कगार हैं उसके दो कुछ देर तक सुस्ताकर सफलता के तट पर वापस मुड़ जाता हूँ असफलता के कगार की ओर जो अपना ज्यादा दिखता है पानी में आग लगाना बेशक एक मुहावरा हो मगर अंदर का अग्निगर्भ तैराक अभी थका नहीं है शायद
हिंदी समय में अर्पण कुमार की रचनाएँ