नव नभ के नव विहग-वृंद को नव पर, नव स्वर दे ! - (निराला)
विलियम हर्षल का नाम विज्ञान का हर छात्र जानता है। उन्होंने वह किया, जो
सदियों से न हो सका था। छह ग्रहों की सीमा के आगे वे हमें ले गए और बताया कि
एक और भी ग्रह है, जिसे न कोई प्राचीन मनीषी जानता है और न किसी ग्रंथ में
जिसका उल्लेख है। बुध-शुक्र-मंगल-बृहस्पति-शनैश्चर के आगे भी परिवार का एक
सदस्य है।
पहले-पहल उन्हें वह एक धूमकेतु जान पड़ा था। लेकिन फिर ध्यान से देखने पर वह
ग्रह सिद्ध हुआ। नाम उसका वे रखना चाहते थे अपने महाराज जॉर्ज तृतीय के नाम
पर। लेकिन बात जम न सकी। सामंतवाद और उपनिवेशवाद विज्ञान-विस्तार में नहीं
चलता। न यहाँ खुशामद चलती है। (गौतलब बात यह भी है कि जिस हैनोवर-कुल के जॉर्ज
तृतीय थे, वह भी विलियम हर्षल की ही तरह जर्मनी से ब्रिटेन पधारा था।)
सो नए ग्रह को आज हम किसी जॉर्ज-वॉर्ज के नाम पर नहीं जानते। फिर बात चली कि
इसका नाम क्यों न वैज्ञानिक हर्षल के नाम पर ही रख दिया जाए : हर्षल। यह
नामकरण भी जोर न पकड़ सका। नया ग्रह हर्षल के नाम से कम ही जाना गया। उसे पहचान
मिली पौराणिक नाम 'यूरेनस' के रूप में ही। प्राचीन आकाशीय देव औरानॉस का
रूपांतरण। भारत में इस तर्ज पर इसे 'अरुण' भी कहा जाने लगा। यद्यपि इस नीले
ग्रह में अरुणता तनिक नहीं नजर आती।
खैर। नामकरण के आगे व्यक्ति की बात करते हैं। विलियम हर्षल का पहला प्यार
संगीत था। वे जर्मनी से इंग्लैंड पधारे थे। जर्मनी जो उन्नीसवीं सदी में
रूमानियत की जन्मस्थली थी। सो संगीत के त्याग से विज्ञान धनी हुआ। हर्षल ने
खगोल को क्रांतिकारी दिशा दी। पहली बार सदियों में नया ग्रह खोजा गया। कई
ग्रहों के चंद्रमा खोजे गए। नीहारिकाओं के बारे में विस्तार से जानकारी मिली।
यहाँ तक कि अवरक्त किरणों के बारे में भी पहली बार हमें विलियम हर्षल ने
बताया।
विलियम अपने कुल के इकलौते विज्ञानजीवी नहीं थे। उनकी छोटी बहन कैरोलीन उनके
साथ उनके विज्ञान-शोध में साथ निभाती थीं। उनकी मृत्यु के बाद भी उनके इकलौते
बेटे जॉन ने उनके खगोल-कार्य और विज्ञान-साधना को आगे बढ़ाया और कई नई-नई बातें
सामने लाए। पिता-मौसी के साथ पुत्र, तीन लोगों का विज्ञान में विलक्षण अवदान
हमें विरले ही देखने को मिलता है।
लेकिन विलियम का मन तो रूमानी था न ! संगीत और जर्मनी छोड़कर वे विज्ञान और
इंग्लैंड की गोद में आ बैठे थे। पर उनकी रूमानियत जस-की-तस रही। अपने बनाए गए
शक्तिशाली टेलिस्कोप से वे चंद्रमा पर पेड़ देखने के दावे करते। यह कहते कि
चंद्र-क्रेटरों में भी जीव रहते हैं। यहाँ तक कि सूर्य के भीतर भी जनसंख्या
है। आज हम चाहें, तो हर्षल के इन दावों पर मुस्कुरा सकते हैं।
विज्ञान का संसर्ग जब कला से होता है, तो सबसे पुष्ट और सुरूप संसार-संतति
जन्म लेती है। यह करना सरल नहीं है। कलाकारों का वैर विज्ञान से रहता आया है;
वैज्ञानिक कलाओं को कपोल-कल्पना समझते हैं। लेकिन जब यह सम्मेल होता है, तो
लियोनार्डो द विंची-सरीखा कोई महात्मा जन्म लेता है और युगप्रवर्ती भूमिका
निभाता है।
मैं जब भी हर्षल के बारे में पढ़ता हूँ, तो कीट्स को हमेशा याद रखता हूँ।
संगीतकार-वैज्ञानिक और ढूँढ़े गए नए ग्रह यूरेनस का प्रभाव दुनिया-भर के कवियों
पर पड़ा था। इसलिए जब कीट्स अपनी सॉनेट 'ऑन फर्स्ट लुकिंग इनटू चैपमैंस होमर'
लिखते हैं, तो विलियम हर्षल की तुलना होमर से किए बिना रह नहीं पाते। यूनानी
साहित्य के वाल्मीकि को वे नए क्रांतिकारी वैज्ञानिक के साथ स्थान देते हैं और
दोनों से प्रेरणा लेते हैं। यह रूमानी साहित्य का रूमानी विज्ञान से लिया गया
अनुप्रेरण है।
Then felt I like some watcher of the skies
When a new planet swims into his ken;
Or like stout Cortez when with wond'ring eyes
He stared at the Pacific - and all his men
Looked at each other with a wild surmise -
Silent upon a peak in Darien.
मैं हर्षल का नाम हिंदी में महसूसता हूँ और फिर एक बार मुस्कुराता हूँ। वह जो
हर्ष लाता है, वही हर्षल है। हर्ष संगीत का। हर्ष विज्ञान का। हर्ष नई खोज का।
हर्ष नवीनता में ही है। प्राचीन वस्तु-व्यक्ति ढाढ़स और निश्चिंतता चाहे दे
दें, विस्तार और विकास नयों से ही मिलती है। वे कहाँ हैं जो समाज को आगे ले
जाएँगे ? वे कहाँ हैं जो हर्षल कहलाएँगे ? वे कहाँ हैं जो कीट्स की कविता में
स्थान पाएँगे ?
कीट्स असाधारण कवि हैं। इसीलिए वे होमर को हर्षल के साथ ले आते हैं। यह सम्मेल
विज्ञान-कला के प्रणयालिंगन से भी अधिक दुष्कर है। जो प्राचीनता के मोह में
हैं, वे नवीन युगप्रवर्तन करने को तैयार नहीं। हर बात पर वे पुराने ग्रंथ
पलटते हैं। जो नवीन भोगवृत्तियों के साथ जी रहे हैं,वे नित्य प्राच्य कथ्य का
उपहास करते हैं। जड़ प्राच्यप्रेमी बढ़ता ही नहीं, अस्थिर नवमोही को ठहरना नहीं
आता।
ऐसे में कीट्स को पढ़ना चाहिए। उनकी इस सॉनेट को। और फिर चार्ल्स डिकेंस के उस
उपन्यास 'अ टेल ऑफ टू सिटीज' की उस पंक्ति की जेहन में गूँज महसूसनी चाहिए :
इट वॉज द बेस्ट ऑफ टाइम्स, इट वॉज द वर्स्ट ऑफ टाइम्स ! यही संतुलन की भाषा है
! बहुत बड़े निर्माण अपने संग बहुत बड़े ध्वंस लाते हैं। उन्नीसवीं सदी ऐसा ही
एक कालखंड था !