दूर देस से दूत आया है। आया है और आकर निकल जाएगा। लेकिन घर से निकलने-निकलने
में उसे बीस हजार साल लग जाएँगे।
ओमुआमुआ ! हवाई भाषा में इस शब्द का अर्थ अग्रदूत होता है। वह जो न जाने कितनी
दूर से यात्रा करते-करते हमारे सौरमंडल में प्रवेश कर गया। हवाई में स्थित एक
टेलिस्कोप से उसे वैज्ञानिकों ने देखा और उसकी पुष्टि की। फिर उसपर चर्चाएँ चल
पड़ीं। कौन है ? क्या धूमकेतु ? कहाँ से आया है ? कहीं कोई रेडियो-सिग्नल तो
नहीं किसी अन्य प्रजाति का ? जीवन का कोई संकेत ?
सौरमंडल में भटकते हर पत्थर पर हम जीवन ढूँढ़ते फिरते हैं। हमने ओमुआमुआ पर भी
यही तलाशने का प्रयास किया। नहीं, यह धूमकेतु नहीं था। धूमकेतु जब सूर्य के
समीप आते जाते हैं, तो उनके एक पूँछ उग आती है। साथ में एक आवरण भी चारों ओर।
इस आवरण को कॉमा नाम दिया जाता है। धूमकेतु की पूँछ और यह आवरण कॉमा बने होते
हैं वाष्प और धूल से।
लेकिन ओमुआमुआ के पास न कोई आवरण था और न कोई पुछल्ला। वह एकदम नग्न पिंड था।
लंबाकार, न कि गोल। रंग में लालिम। पथरीला। इसलिए उसे अंतरतारकीय पिंड
(इंटरस्टेलर ऑब्जेक्ट) की संज्ञा वैज्ञानिकों ने प्रदान की।
ओमुआमुआ के उद्भव पर भी बड़ी चर्चाएँ चलीं। कहाँ से आया है ? सौरमंडल के बाहरी
गहरे अँधेरों से ? वहीं से जहाँ से हैली और न जाने कितने की अन्य धूमकेतु आते
और सूर्य के चक्कर लगाकर जाते हैं ? नहीं ? तो फिर कहाँ से ? बाहर से ? कितने
बाहर से ?
सच तो यह है कि हम यह भर जानते हैं कि ओमुआमुआ हमारे घर का नहीं है। लेकिन
कहाँ का है, इससे हम अनभिज्ञ हैं। आसमान में किसी रक्तिम दंडिका-सा
लहराता-घूमता वह तेज गति से सूर्य की ओर आता गया और फिर परिक्रमा करते हुए
उससे अब दूर हटता जा रहा है। कक्षा-वृत्त हायपरबोलिक। इतनी तेज रफ्तार से उसकी
आहट से ही हमें समझ आ गया कि वह हमारे परिवार का पिंड नहीं है, बाहरी है।
अपने तरह का ऐसा बाहरी पिंड हमने पहली बार देखा है। मुसाफिर कई आते होंगे,
अँधेरे में नजर बचा कर निकल जाते होंगे। ओमुआमुआ आया वीगा तारे की ओर से है।
वीगा जो लाइरा तारा-मंडल में पड़ता है। लेकिन किसी दिशा से आने का अर्थ यह नहीं
कि उसका जन्म वहीं उसी तारे या समीप के किसी ग्रह से हुआ हो। इसलिए हम दिशा
जानकर भी ओमुआमुआ का जन्मस्थल जानने में असफल हैं।
हमारी आकाशगंगा में पदार्थ के घूमने की जो औसत गति है, उसे लोकल स्टैंडर्ड ऑफ
रेस्ट कहा गया है। आकाशगंगा का सभी कुछ घूम रहा है। ओमुआमुआ की गति भी इस गति
से बहुत मेल खाती है। इससे वैज्ञानिक यह सोचते हैं कि यह अग्रदूत आकाशगंगा के
किसी अन्य ही हिस्से की उपज है और करोड़ों वर्षों से ऐसे ही अँधेरे में चक्कर
खाता भटक रहा है।
चलें ओमुआमुआ पर ? संभव है ? कल्पना तो एक क्षण में पहुँच जाती है। लेकिन सच
यह है कि उसकी गति बहुत तेज है। वह अब हमसे दूर इस रफ्तार से जा रहा है कि हम
उस तक अपनी तकनीकी के प्रयोग से पहुँच न पाएँगे। बस उसे स्वयं से दूर जाता
निहारेंगे। अँधेरे आसमान में घूमती एक लाल चट्टानी दंडिका। अग्रदूत का
विदा-नृत्य !