पुराने बच्चों को स्कूल में नौ ग्रह पढ़ाए गए; आज-कल के बच्चे आठ पढ़ते हैं। जो
थोड़े अधिक कुतूहली हैं, वे इस आठ की संख्या के बाद एक प्रश्नचिह्न लगा छोड़
देते हैं। नेप्ट्यून से सुदूर शायद कोई और है, जिस पर से कभी पर्दा उठेगा और
सत्य प्रकट होगा। वह जो नवाँ होगा और नवा भी। वही कहलाएगा हमारे परिवार का
नवीनतम ज्ञात सदस्य। प्लानेट नाइन कभी तो सामने आएगा !
प्लूटो से ग्रह की पदवी छिनना उसका अवमूल्यन नहीं था; वह विज्ञान की पिंडीय
समझ का विस्तार था। अनुभव में विस्तार वर्गीकरण को व्यापक बनाता है। सो हम
खाँचे खींचने में व्यापक हुए। हमने प्लूटो और उस-जैसों को वामन ग्रहों की
संज्ञा दे डाली। पूरा ग्रह नहीं, उससे कुछ कमतर। और फिर प्लूटो जैसे अनेकानेक
पिंड हमें नेप्ट्यून के परे नजर आए। लेकिन सच अगर यहीं तक रह जाता, तो आठ की
गिनती आगे बढ़ाने की बात सोचनी ही न पड़ती।
नेप्ट्यून से परे के तमाम नन्हें पिंड ट्रांस-नेप्ट्यूनीय पिंड कहलाते हैं और
ये भी सूर्य की ही ग्रहों की तरह परिक्रमा करते हैं। इनमें से कई के
कक्षा-वृत्त एकदम अजीब हैं। आठ बड़े और प्रमुख ग्रहों से नहीं, उनसे एकदम विलग।
जहाँ आठ प्रमुख ग्रहों के परिक्रमा-पथ सूर्य के चारों ओर एक समतल में हैं, ये
नन्हें पिंड बहुत ऊपर-नीचे के रास्तों में सूर्य के चक्कर काटा करते हैं।
इन ट्रांस-नेप्ट्यूनीय पिंडों के परिक्रमा-मार्गों का जमावड़ा भी सूर्य के एक
ओर ही नजर आता है। यानी सूर्य के चारों ओर घूमते हुए, ये सभी एक झुंड-सा बनाए
हुए हैं। एक समूह। और ऐसा होने की कोई वजह वैज्ञानिकों के पास अब तक नहीं है।
या फिर कोई ऐसा पिंड है जो इन नन्हें ग्रहों को एक ओर एकत्रित करने में भूमिका
निभा रहा है। वह जो पृथ्वी से दस गुणा अधिक द्रव्यमान रखता है और चार गुणा बड़ा
है। वह जो नेप्ट्यून से परे एक 'महापृथ्वी' है। वह जो नया नवाँ ग्रह है।
गणित नित्य नए प्रमाण इस प्रच्छन्न परिक्रमी के पक्ष में प्रस्तुत कर रही है।
लेकिन गणितीयता-मात्र को विज्ञान नहीं कहा जाता, जब तक उसमें प्रत्यक्षता
समाविष्ट न हो। सो संसार-भर के वैज्ञानिक अँधेरे में नवें का चेहरा तलाश रहे
हैं। जाने कब सफलता हाथ लगती है।
मुँह-दिखाई में कुदरत को हम कुछ दे नहीं सकते, आश्चर्य की अनुभूति के सिवा।
विस्फारित आँखों से उस नवें का प्रकाश समेट लें, यही क्या कम है !