न जाने नक्षत्रों से कौन,
निमंत्रण देता मुझको मौन। - सुमित्रानंदन पंत।
नक्षत्र-निमंत्रण हमें सहस्राब्दियों से मिले, लेकिन हम उसे स्वीकार कर
प्रस्थान पिछले पचास-साठ सालों में ही कर पाए। अंतरिक्ष में कदम रखने का साहस
कोई मामूली बात नहीं। लेकिन असीम अंधकार में पग धरे बिना मनुष्य को अपनी
क्षुद्रता और अप्रासंगिकता का भली-भाँति भान भी नहीं होता।
पायनियर-10 सन् 1972 में हमने छोड़ा था। 'हम' का अर्थ भारतीय न समझिएगा, 'हम'
का मतलब मनुष्य जानिएगा। अंतरिक्ष की जब बात होती है या परमाणु की, तो
भारत-पाकिस्तान-अमेरिका-जर्मनी बहुत पीछे और बाहर छूट जाते हैं। खगोल का
संज्ञान पाने हम राष्ट्र-ध्वज लेकर नहीं चलते, मानव-केतन लेकर आगे बढ़ते हैं।
(यद्यपि सियासत पट्टियों-सितारों वाला ध्वज चाँद पर गाड़ कर विज्ञान के बहाने
भी शीतयुद्ध जीतना चाहती है !) अगर किसी दूसरे ग्रह के वासी से सामना होगा, तो
परिचय भारतीयता का नहीं, पार्थिवता का दिया जाएगा।
पायनियर-10 पहला ऐसा यान था, जिसने पृथ्वी से उठकर पहले मंगल को पार किया और
फिर क्षुद्र ग्रहों की पट्टी को। तदुपरांत वह बृहस्पति के समीप पहुँचा और उसके
पहले विस्तृत-विशद चित्र भेजे। उसके बाद वह घूम कर आगे निकला और आज हमसे
पंद्रह बिलियन किलोमीटर दूर सौरमंडल से बाहर निकल गया है।
पायनियर-10 का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है, क्योंकि इसमें नासा-वैज्ञानिकों से
एक स्वर्णिम ऑक्साइड लेप-लगी एल्युमिनियम की पट्टिका रखी है। एक ऐसी पट्टिका
जिसपर हमारी पहचान इंगित है। उस पर हाइड्रोजन के एक परमाणु का चित्र है।
हाइड्रोजन जो ब्रह्मांड का सबसे प्रचुर पदार्थ है। हाइड्रोजन जो तारों की
भट्टी का ईंधन है। हाइड्रोजन जिसके कारण हमारा प्रकाश है, जिसके कारण हमारा
पानी। हाइड्रोजन जो अगर न हो, तो जीवन नष्ट हो जाए।
इसी स्वर्णिम पट्टिका पर सूर्य की स्थिति चौदह पल्सर तारों के सापेक्ष इंगित
है। पल्सर तारे वे जो घूर्णन करते हैं, जिनकी ज्योति कम-ज्यादा होती रहती है।
वे हमारे ब्रह्मांड के आकाशदीप यानी लाइट-हाउस हैं। उनके साथ सूर्य को इसलिए
चित्रित किया गया ताकि असीम आकाश में सूर्य की सही स्थिति जानी जा सके। फिर
इसी पट्टिका पर सौर-मंडल के सभी ग्रह सूर्य समेत दर्शाए गए हैं। पायनियर का
यात्रा-पथ भी प्रदर्शित किया गया है।
सबसे दिलचस्प चित्रण एक स्त्री और पुरुष के जोड़े का। पुरुष का दाहिना हाथ
अभिवादन-मुद्रा में ऊपर उठा है। स्त्री अपनी दाहिनी टाँग बाहर को करके उसके
बगल में खड़ी है। दोनों के शरीर के स्थूल अंग-लक्षण स्पष्ट हैं। दोनों की
मुद्राओं में विभेद इसलिए रखा गया है, ताकि यह बताया जा सके कि हम मित्रता
चाहने वाले लोग हैं और हमारी देहें और मन लचीले हैं।
कहने को सन् 2003 से हमारा पायनियर-10 से संपर्क टूट चुका है। लेकिन संपर्क के
लिए जो स्पर्श हमने अंधकार में बढ़ाया है, वह कभी टूटने-छूटने वाला नहीं। हमारा
यह यान अपनी पट्टिका के साथ लाखों-करोड़ों वर्षों तक अंतरिक्ष में आगे बढ़ता
निकल जाएगा। अभी यह वृषभ तारामंडल के लाल तारे अल्डबरान (रोहिणी) की ओर बढ़ रहा
है। इसकी किसी पिंड से टक्कर न हुई, तो यह बीस लाख सालों में इस तारे तक जा
पहुँचेगा। बीस लाख साल ! तब तक हम सब मिट जाएँगे। या शायद मानवता और उसके
द्वारा निर्मित जीवन की नई परिभाषाएँ पृथ्वी से निकलकर कई जगहों पर बस चुकी
हों। लेकिन हमारी यह पुकार आसमान में तब भी आगे बढ़ती जाएगी। कि हम हाथ हिला
रहे हैं। कि हम पास बुला रहे हैं। कि हम मित्र हैं। कि हम जुड़ना चाहते हैं।
पायनियर का अर्थ प्राथमिक पथिक होता है। वह जो पैरों से सबसे आगे चलता है, वह
जो पथ पर चलने वाला पहला होता। जो प्रथम है, वही पायनियर है। पायनियर के साथ
हम उन पहचानों को लिए निकले हैं, जो नितांत मौलिक हैं, प्राथमिक हैं।
पायनियर-पट्टिका में किसी नेता का चित्र नहीं है, किसी कलाकार या वैज्ञानिक का
भी नहीं है। पायनियर पर केवल तात्त्विकता-स्थिति-मनुष्यता अंकित हैं।
हाइड्रोजन के ईंधन से ऊर्जा पाते एक सूर्य नामक तारे के पृथ्वी नामक ग्रह पर
रहने वाले नर-मादा की दो पहचानों के साथ रहने वाले हम मनुष्य नामक जीव हैं। बस
!
असुरक्षाओं और असहजताओं में हम कितने अच्छे बन जाते हैं ! वही हम जो यहाँ
देश-धर्म-जाति-नस्ल-अर्थ के नाम पर लड़ते हैं, किस्म-किस्म की गंदी राजनीति
करते हैं। क्या हम तभी मैत्री सीख सकेंगे, जब हमसे अधिक शक्तिशाली कोई हमें
असहज-असुरक्षित करेगा ?