भारत और रूस के संबध मैत्रीपूर्ण रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 23-24 दिसंबर, 2015 को भारत-रूस 16वें वार्षिक शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए रूस यात्रा पर थे। इस दौरान दोनों देशों के बीच 16 समझौते होने से मैत्री संबधों में एक नया अध्याय जुड़ा। समझौते में, दोनों देशों के नागरिकों और राजनयिक पासपोर्ट रखने वालों की आवाजाही के लिए कुछ श्रेणियों में नियम कायदों को सरल बनाने, कस्टम मामलों पर सहयोग की योजना, रेलवे सेक्टर, हेलीकॉप्टर इंजीनियरिंग में सहयोग आदि शामिल हैं। पिछले दिनों रसियन स्टेट यूनिवर्सिटी, मास्को से डॉ. इंदिरा गाजिएवा अपने विद्यार्थियों के एक दल के साथ महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में स्टडी टूर पर आए। विश्वविद्यालय के सहायक संपादक डॉ. अमित विश्वास ने रूस में 'हिंदी की दशा और दिशा' पर लंबी बातचीत की, प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंश :
वर्धा विश्वविद्यालय में आप सभी का हार्दिक अभिनंदन।
बहुत-बहुत धन्यवाद।
समाजवाद के जनक देश - रूस में हिंदी की दशा पर आपका मंतव्य?
रूस में भारतीय संस्कृति, भारतीय भाषाएँ तथा साहित्य की पहचान बीसवीं सदी के छठे दशक से शुरू हो गई थी। हिंदी, बांग्ला, तमिल, मराठी, पंजाबी, उर्दू, ओड़िया भाषाओं के साहित्य का अनुवाद रूसी भाषा में हुआ है। लेकिन यह स्थिति सोवियत संघ के जमाने में थी। सबसे पहले मैं बताना चाहती हूँ कि सोवियत संघ के 15 गणतंत्रों में विज्ञान अकादमियाँ बनी हुई थीं जिनके प्राच्य विभागों में कई भारतीय भाषाओं के साहित्य, इतिहास, संस्कृति और अर्थ-व्यवस्था के क्षेत्र में बड़ा अनुसंधान कार्य हुआ। बहुत से स्कूल थे जहाँ हिंदी तथा उर्दू की उच्च स्तरीय पढ़ाई होती थीं। सन् 1990 तक रूसी लोग स्कूलों या विश्वविद्यालयों में हिंदी सीख कर इसे थोड़ा-बहुत समझ लेते थे लेकिन उन्हें बोलने का मौका नहीं मिलता था। उस जमाने में सोवियत संघ में भाषा सिखाने के लिए व्याकरण-अनुवाद पद्धति का इस्तेमाल किया जाता था। इस पद्धति में व्याकरण सीखना बहुत जरूरी था। विद्यार्थियों को व्याकरण के नियम सीखने होते थे, पाठ को रवानी से पढ़ना होता था, प्रश्न-उत्तर का अभ्यास करना पड़ता था, भारतीय लेखकों की बहुत-सी रचनाएँ पढ़नी होती थीं और अनुवाद करना होता था। इस तरह का अभ्यास रोजाना करते रहने से हिंदी सीखने का स्तर ऊँचा हो रहा था। लेकिन हिंदी सीखनेवाले लोग रवानी से बोल नहीं पाते थे क्योंकि उस समय की हिंदी साहित्यिक रूप में लिखी हुई थी। उस समय सोवियत संघ में अनेक भारतीय लेखकों तथा महाकवियों की रचनाएँ रूसी में अनुवाद की जाती थीं - जैसे प्रेमचंद, अमृतलाल नागर, वृंदावनलाल वर्मा, कृशन चंदर, भीष्म सहनी, यशपाल, जयशंकर प्रसाद, अमृता प्रीतम, हरिवंशराय बच्चन, अज्ञेय, अशोक वाजपेयी, रघुवीर सहाय, श्रीकांत वर्मा आदि। इनके अलावा हिंदी के अपेक्षाकृत युवा पीढ़ी के कवियों की रचनाओं के अनुवाद भी रूसी में प्रकाशित किए गए, जैसे : विश्वनाथप्रसाद सिंह, गोरख पांडेय, मंगलेश डबराल, उदय प्रकाश, नरेंद्र जैन, अरुण कमल, अनिल जनविजय, गगन गिल और स्वप्निल श्रीवास्तव आदि। रूसी संस्कृति तथा विज्ञान अकादमी में एक बड़ा साहित्य विभाग था जिसमें रूस के प्रमुख विद्वानों ने भारतीय एवं हिंदी साहित्य पर अनुसंधान किया। रशिया में हिंदी भाषा और साहित्य सिर्फ़ छः विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जाती हैं - मास्को में चार, व्लादिवोस्टोक में (फार-ईस्ट विश्वविद्यालय में) एक और सेंट पीटर्सबर्ग के सरकारी विश्वविद्यालय में। इसके अलावे मास्को में एक बोर्डींग-स्कूल है जहाँ करीब छह दशक से हिंदी पढ़ाई जा रही हैं।
क्या रूस में युवा पीढ़ी हिंदी सीखने के लिए उत्सुक हैं?
रूस के युवा रोजगार की दृष्टि से हिंदी सीखना चाहते हैं। यहाँ के युवा भारतीय संस्कृति एवं भाषाओं के बारे में कुछ न कुछ जानकारी रखते हैं। हम जानते हैं कि हिंदी भाषा का अध्ययन किए बिना भारत की संस्कृति का पूरा ज्ञान नहीं हो सकता है। किसी भी देश की संस्कृति के सभी पहलुओं को जानने के लिए उस देश की भाषा को सीखना अनिवार्य होता है। रशियन युवाओं को न्यू मीडिया/ वेबसाइटों पर अध्ययन में रूचि है। वे फेसबुक व यू ट्यूब के माध्यम से हिंदी पाठ, हिंदुस्तानी फ़िल्में, गाना, नाटक, कार्टून्स, संगीत तथा नृत्य को असानी से पाते हैं। इतना ही वे फेसबुक के माध्यम से भारतीय टीवी सीरियल्स जैसे - महाभारत, रामायण, बुद्ध धर्म का इतिहास और आधुनिक टीवी सीरियल्स जैसे - टशन-ए-इश्क़, जोधा अकबर, कुमकुम भाग्य आदि से संबंधित कई वेब सोसाइटी का इंतजाम करते हुए इन टीवी सीरियल्स का अनुवाद एवं सब्टाइटल्स करके फिर किसी रूसी टीवी कंपनियों को बेचते हैं। रशिया में हिंदी टीवी चैनल हैं जैसे- इंडिया टीवी (India TV), जी टीवी (Zee TV), इससे रूसी लोग भारतीय संस्कृति, कला, खानपान और फिल्मों के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं। हिंदी भाषा, भारतीय साहित्य, इतिहास तथा संस्कृति हमारे विद्यार्थियों को बहुत अच्छे लगते हैं। समकालीन लेखकों को वे पढ़ते हैं और बड़ी उत्सुकता से अनुवाद करते हैं। हमारे विद्यार्थी महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय की वेबसाइट 'हिंदीसमयडॉटकॉम' से साहित्य रचनाओं को पढ़ते हैं और उसका अनुवाद रूसी भाषा में करते हैं।
रूसी छात्र को हिंदी सीखने के लिए किन चुनौतियों का सामना पड़ता है?
सोवियत संघ के जमाने (या यों कहें कि सन् 1990) के बाद से हिंदी सीखने की कला बदल गई। हिंदी सिखाने का ढ़ाँचा भी बदल गया। विदेशी भाषा सीखने के लिए मौखिक रूप का महत्व बढ़ने लगा। लोग हिंदी जानना चाहते हैं और वे जल्दी सीखकर सहजता से बोलना चाहते हैं। हिंदी सिखाने में इंटरनेट का अभिन्न योगदान है। वहाँ के शिक्षक कंप्यूटर और टेलीकम्यूनिकेशन्स का उपयोग करके हिंदी का अध्यापन कराते हैं। प्रयोजनमूलक 'फंक्शनल' भाषा का प्रयोग करने का समय आ गया था। सोवियत संघ में लोग अच्छी तरह से विदेशी भाषाएँ सीखते थे मगर उन्हें बाहर जाने का मौका नहीं मिलता था। अब रूसी लोग सालों भर बाहर जाते रहते हैं और विदेशी भाषाएँ जल्दी सीखना चाहते हैं। विश्वविद्यालयों में भाषा सिखाने के अल्पकालिक कार्यक्रम भी शुरू किए गए। इसी वजह से आजकल लोगों को व्याकरण पढ़ने में रूचि नहीं है। उनकी रूचि सिर्फ़ बात करने में है। अब भाषा सीखने की नई पद्धति सामने आई - "गहन और भाषा - संस्कृतिपरक भाषाशिक्षण पद्धति" या "Intensive and lingo-cultural method of teaching"। आज के विद्यार्थी भाषा सीखने की पद्धति का चयन स्वयं करते हैं।
जैसा कि भारत में हिंदी बनाम अँग्रेजी का बहस जोरों से चल रहा है क्या यही स्थिति रूस में भी है?
इंटरनेट के कारण रूसी भाषी भी बहुत सारे अँग्रेजी शब्दों को अपना लिया है। हमारे देश के संविधान के अनुसार राजकीय भाषा रूसी है, यहाँ रूसी बनाम अँग्रेजी का कोई बहस नहीं है।
रूस में हिंदी के विकास के लिए महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय और भारत सरकार से आपकी अपेक्षाएँ?
रूस के युवा हिंदी-प्रेमी बन जाते हैं। वे इंटरनेट के माध्यम से हिंदी टीवी सीरियल्स, वॉलीवुड मूवी को रशियन में अनुदित रूप में देखना चाहते हैं। भारत सरकार, खासकर महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा से हमारी अपेक्षा है कि रूस में हिंदी के विकास के लिए नियोजनबद्ध तरीके से वहाँ के अनुकूल हिंदी का मानक पाठ्यक्रम तैयार करवाएँ और पाठ्य-पुस्तकें प्रकाशित कर उपलब्ध भी करवाएँ।
आप लंबे समय से हिंदी साहित्य से जुड़ी रही हैं आप विश्व साहित्य की तुलना में हिंदी साहित्य को कहाँ पाते हैं?
यहाँ का साहित्य बहुत ही समृद्ध है। हिंदी साहित्य की तुलना हम विश्व साहित्य से कर सकते हैं। आंचलिक विषयों के लेखक फणीश्वर नाथ रेणु के साहित्य को तो नोबेल पुरस्कार मिलना चाहिए, क्यों नहीं मिला है, शायद हम अच्छे अनुवाद उपलब्ध नहीं करवा पा रहे हैं। रूस में भारतीय हिंदी साहित्य का बड़ा प्रभाव है, क्योंकि हिंदी साहित्य में सामाजिक जीवन के अत्यावश्यक मामलों को उठाया जाता है जैसे - वर्णभेद, गरीबी, भ्रष्टाचार, अपराध, महिलाओं की स्थिति, बेरोजगारी, जाति-द्वेष आदि। भूतपूर्व सोवियत संघ में अनेक भारतीय लेखकों तथा महाकवियों की रचनाएँ-कविताएँ रूसी में अनुवाद की जाती रही थीं - जिसका मैंने पहले ज़िक्र किया है। रूसी संस्कृति तथा विज्ञान अकादमी में एक बड़ा साहित्य विभाग था जिसमें रूस के प्रमुख विद्वानों ने भारतीय एवं हिंदी साहित्य पर अनुसंधान किए थे। हम हिंदी के शिक्षक अध्यापन के दौरान हिंदी कहानियों का अनुवाद करने की आदत विकसित कर ली हैं।
वैश्विक पटल पर हिंदी का भविष्य कैसा दिखता है?
मेरे ख्याल में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी का महत्व साल-दर-साल बढ़ता रहेगा। हिंदी की विजय होगी!
हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा का दर्जा दिलाने के लिए क्या प्रयास किये जाने चाहिए?
हिंदी विश्व में सर्वाधिक बोली व समझी जाने वाली भाषाओं में तीसरे स्थान पर है, हिंदी भाषा में ज्ञान का अकूत भंडार है। भारत सहित विश्व के कई देशों में हिंदी का अध्ययन-अध्यापन हो रहा है। ज्ञान, विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में हिंदी का विकास निरंतर हो रहा है, वह दिन दूर नहीं, जब इसे संयुक्त राष्ट्र में आधिकारिक भाषा का दर्जा प्राप्त हो जाएगी।
वर्ष 2008 और 2009 में भारत और रूस ने एक-दूसरे के राष्ट्रीय साल मनाए हैं, इस संदर्भ में आप क्या कहना चाहेंगे?
वर्ष 2008 में रूस में भारत का राष्ट्रीय वर्ष बड़े धूम-धाम से मनाया गया। जवाहरलाल नेहरू सांस्कृतिक केंद्र और भारतीय दूतावास के सहयोग से रूस के कई नगरों में हिंदुस्तानी कलाकारों ने भारतीय संस्कृति की झलक प्रस्तुत की। इसी तर्ज पर वर्ष 2009 में भारत में रूस का राष्ट्रीय साल मनाया गया। रूस के प्रसिद्ध कलाकरों ने भारत के बड़े शहरों में घूमते हुए सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किये। दोनों देशों के लोगों को मजा आ रहा था।
हिंदी के विकास में भारतीय दूतावस की भूमिका के बारे में भी बताएँ?
हमारा विश्वविद्यालय और जवाहरलाल नेहरू सांस्कृतिक केंद्र के बीच 2011 में समझौता पत्र (MOU) पर हस्ताक्षर किया गया था। इसके माध्यम से निरंतर आयोजन होते रहते हैं। वर्ष 2014 में रूसी राजकीय मानविकी विश्वविद्यालय में क्षेत्रीय हिंदी सम्मेलन का आयोजन किया था। हाल ही में 2015 में भी संस्कृत का सम्मेलन आयोजित किया गया। हर सप्ताह में कुछ न कुछ गतिविधियाँ होती रहती हैं, जैसे - नृत्य-संगीत संध्या, योग-संध्या, कलाकारों से मुलाकतें, हिंदुस्तानी फिल्मों का प्रदर्शन आदि। जब हमारे हिंदी सीखनेवाले विद्यार्थी भारत के भाषा-यात्रा पर जाना चाहते हैं तो भारतीय दुतावस वीजा में बड़ी मदद करता है।
क्या आपको लगता है कि भारत और रूस के लोग एक-दूसरे को पसंद करते हैं?
रूस और भारत के रिश्ते बड़े गहरे व पुराने हैं। हमारे महामहिम राष्ट्रपति दमीत्रीय मेद्वेदेव जी ने इक्कीसवीं सदी में रूस-भारत की मैत्री और साझेदारी के लिए पहल की है। इससे न केवल आर्थिक-व्यापार संबंध प्रगाढ़ हुए बल्कि शैक्षणिक व सांस्कृतिक सहयोग में भी नए अवसर खोजने शुरू हुए हैं। रूसी जनता भारत को सदा प्यार करती रहेगी और मुझे आशा है कि दोनों देशों के बीच वैज्ञानिक-सांस्कृतिक संबंध और भी मजबूत होंगे। सन् 2016 में हमारे देशों के बीच कूटनीतिक संबंधों पर 70 वीं वर्षगाँठ मनाई जाएगी। सांस्कृतिक क्षेत्र में हम दोनों देशों का आपस में बड़ा योगदान है। आशा है कि व्यावसायिक, परमाण्विक, विद्युत उत्पादन वग़ैरह के क्षेत्रों में बड़ी उन्नति होंगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 23-24 दिसंबर, 2015 को रूस गए, 16 समझौते हुए, दोनों देशों के नागरिकों और राजनयिक पासपोर्ट रखने वालों की आवाजाही के लिए नियम कायदे सरल बनाए जाएँगें, इस संदर्भ में आपका मंतव्य?
ये सवाल पॉलीटिकल है, हिंदी की अध्यापिका होने के नाते मैं तो इतना ही जानती हूँ कि 23-24 दिसंबर को भारत-रूस 16वें शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रूस आए तो क्रेमलिन में उन्होंने कहा कि भारत रूस को एक विश्वसनीय मित्र मानता है तथा दोनों देश अब अंतरराष्ट्रीय और राजनयिक मोर्चे पर अधिक सक्रियता से सहयोग कर रहे हैं, दोनों देशों के बीच 16 समझौते हुए हैं, इससे हम और भी करीब आ जाएँगे।