साइबर कानूनए बीपीओ कानून, बौद्धिक संपदा अधिकार और सूचना प्रौद्योगिकी कानून,
सूचना सुरक्षा कानून के विशेषज्ञ व सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता
पवन दुग्गल से अमित कुमार विश्वास ने साइबर कानून के संदर्भ में लंबी बातचीत
की। प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंश -
प्रश्न.
21 वीं सदी साइबर सदी के रूप में जाना जाता है, इस युग में नई तकनीक ने नए
प्रकार के अपराधों को जन्म दिया। साइबर क्राइम के आतंक से दुनिया भयभीत
है, क्या इस पर नियंत्रण के लिए कानून बनाए गए हैं।
उत्तर.
भारत में एक कानून है। इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट 2000, मुख्य रूप से इस
कानून को बनाया गया था। भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स कॉमर्स को बढावा देने के लिए।
लेकिन जैसे-जैसे समय गुजरा इस कानून में परिवर्तन हुएए 2008 में संशोधन किया
गया, जिसे अक्टूबर 2009 से लागू किया गया है। इन संशोधनोपरांत अब ये कानून
काफी हद तक न्यू मीडिया को नियंत्रित कर लिया है। पहले लोगों के दिमाग में है
कि आप न्यू मीडिया के साथ जुडे हैं जो कुछ करना चाहें, कर लें, कोई कानूनी
अंकुश नहीं होगा, ये धारणा गलत होगी, मिथ्या होगी। आज न्यू मीडिया (सोशल
मीडिया) इंटरनेट आदि पूरी तरह से आईटी एक्ट 2000 के अंतर्गत आ चुका है। अगर
आप कुछ भी अनावश्यक चीजें लिखते हैं या उसका इस्तेमाल करते हैं या दुरूपयोग
करते हैंए किसी व्यक्ति विशेष पर आक्रमण करने के लिए या उसकी प्रतिष्ठा पर
नकारात्मक प्रभाव डालने के लिए या किसी का मानहानि करते हैं, इन तमाम सारी
गतिविधियों को दंडनीय अपराध घोषित किया गया है। साइबर अपराधों के सिद्ध होने
पर सजा के रूप में 3 वर्ष की कैद तथा 5 लाख रूपये जुर्माने का प्रावधान है
जबकि इस तरह की गतिविधियों में संलग्न रहते हैं तो आप पर 5 करोड़ तक का
हर्जाना भी लगाया जा सकता है।
प्रश्न. साइबर अपराध का ग्राफ बढता ही जा रहा हैए क्या पुलिस इससे
निपटने में सक्षम हो पा रही है।
उत्तर.
नोर्शन इंटरनेट सिक्योरिटी रिपोर्ट 2010 के अनुसार 73 प्रतिशत इंटरनेट
प्रयोक्ता साइबर क्राइम के शिकार होते हैं। मात्र 27 प्रतिशत ही बच पाते हैं।
भारत में साइबर क्राइम की अंडररिपोर्टिंग हो रही है। ऐसे अपराध की रिपोर्ट
किया भी जाता है तो पुलिस प्राथमिकी (एफआईआर) दर्ज नहीं करते हैं। एक सर्वे के
अनुसार साइबर क्राइम के 500 मामलों में से केवल 50 मामलों की ही रिपोर्ट हो
पाती है तथा जाँचोपरांत उनमें से मात्र एक मामले में एफआईआर हो पाती है।
व्यावसायिक तौर पर 15 अगस्त 1995 से इंटरनेट की शुरूआत हुई। पिछले 15 वर्षों
में सिर्फ तीन : दिल्ली के एक आर्थिक मामले में तथा चैन्नई के दो अश्लील
इलेक्ट्रॉनिक्स मामलों मेंद्ध साइबर क्राइमों में सजा हो पायी है। साइबर
क्राइम के बारे में पुलिस को बहुत ही कम जानकारी है। पिछले वर्ष 2004 में
दिल्ली की डिफेंस कॉलोनी में जब्त की गई 17 अश्लील फ्लॉपी को पुलिस ने छेद
कर रस्सी बाँधकर अदालत में प्रस्तुत किया। इतना ही नहीं वर्ष 2006 में मुबई
के शेयर दलाल के पास से भी पुलिस ने कंप्यूटर के मॉनीटर तो जब्त किए पर
सीपीयू को छोड दिया।
प्रश्न. न्यू मीडिया के रूप में ब्लॉग आज अभिव्यक्ति का एक सशक्त
माध्यम बन चुका है। लोग अभिव्यक्ति के नाम पर ब्लॉग का दुरूपयोग कर
अनाप-शनाप लिखने लगे हैं,
इस पर नियंत्रण कैसे लगाया जा सकता है।
उत्तर.
अमेरिका में ब्लागर्स को पत्रकार का दर्जा दिया गया है। हृवाइट हाउस ब्लॉगर
को आम पत्रकार की भाँति सुविधाएँ देती है। नई मीडिया, ट्विटर, फेसबुक आदि आने
से पत्रकारिता की शक्ल बदल गई है। भारत में भी ब्लॉगिंग अभिव्यक्ति का एक
सशक्त जरिया बन चुका है। ये बात सही है कि आपको अभिव्यक्ति का मौलिक अधिकार
प्राप्त हैए संविधान के अनुच्छेद 19 (1) को देखें तो आप पाएँगे कि यह
संपूर्ण तौर पर निरपेक्ष अधिकार नहीं है अनुच्छेद 19 (2) के तहत इसपर कुछ वैध
प्रतिबंध भी लगाए गए हैं। भारत में ब्लॉगिंग के कुछ प्रारंभिक अध्याय पढ़ रहे
हैं, जैसे-जैसे समय गुजरेगा ब्लॉगर्स के बहुमत की मानसिकता में ये बात आएगी
कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरूपयोग न होने पाए। कानून कहता है कि
ब्लॉग पर अगर आप कुछ अनाप-शनाप लिखते हैं तो आपके खिलाफ कार्रवाई हो सकता है।
क्रिमिनल या सिविल कार्रवाई हो सकती है। क्रिमिनल कार्रवाई में 3 साल की सजा
तथा 5 लाख रूपये की जुर्माना हो सकती है और सिविल कार्रवाई में 5 करोड़ तक का
हर्जाना भी हो सकता है। इसलिए ब्लागर्स को बहुत ज्यादा सावधान होना पडेगा।
अब वो दिन चला गया कि आप जो कुछ भी चाहें, लिखते रहें। कारण यह है कि आप जो
कुछ गलत लिख रहे हैं वो आईटी एक्ट के तहत आ गया है। आपके खिलाफ कौन व्यक्ति
कैसे मुकदमा ठोक दे, यह आपको मालूम भी नहीं होगा इसलिए सावधानी इसी में होती
है कि आप उस समय ब्लॉगिंग करें जब आपका मानसिक संतुलन सही दिशा में हो। अगर
आप बहुत उत्तेजित हैं और आप भावना में आकर ब्लॉगिंग करेंगे तो वहाँ पर
संभावित है कि कहीं न कहीं गलती कर जाएँ और आपको कानूनी परिस्थितियों का सामना
करना पडे।
प्रश्न. ब्लॉगिंग को नई पीढ़ी भी अपना रहे हैं, वे मन की भड़ास निकालने के
लिए अपनी अभिव्यक्ति कर रहे हैं, क्या आपको लगता है कि दो पीढ़ियों के
बीच में संवादहीनता के कारण बच्चे कानूनी प्रक्रिया का परवाह किए बगैर
अपनी अभिव्यक्ति कर रहे हैं क्योंकि हाल ही में एक शिक्षक के विरोध में
लिखने पर सोलह बच्चों का निलंबित कर दिया गया।
उत्तर.
ये बात सही है कि हमारे यहाँ संवादहीनता एक यथार्थ सत्य है। दो पीढ़ियों के
बीच में संवाद का अंतराल है। आप जिस प्रकरण का जिक्र कर रहे हैं, 16 बच्चों
को निलंबित किया गया, शिकायत थी कि बच्चों ने एक ब्लॉग पर जाकर शिक्षक के
विरोध में अनाप-शनाप लिखा क्योंकि शिक्षक ने उन बच्चों को शून्य अंक दिया
था। विद्यालय के पास दो रास्ते थे। एक तो वह लडकों के विरोध में कानूनी
कार्रवाई करता। आईटी एक्ट के तहत 3 साल की सजा या 5 लाख रू. का जुर्माना
लगाया जा सकता था। दूसरा रास्ता था कि अनुशासनात्मक कार्रवाई करे। उस
विद्यालय ने कानूनी रास्ते पर न जाना ज्यादा पसंद किया और उसको
अनुशासनात्मक कार्रवाई के तौर पर लिया। मैं सोचता हूँ कि इस प्रकार की
कार्रवाई पूरी तरह से गलत चीज नहीं है लेकिन उसकी कार्रवाई बच्चों को और भी
खराब परिस्थितियों में ले जाएगा क्योंकि आज जो हम उनको निलंबित किए हैं।
टेक्नोलॉजी इतनी रफ्तार से बढ रही है कि आप जबतक संवाद लोगों में रखेंगे
नहीं, तबतक टेक्नोलॉजी का हरवक्त दुरूपयोग होता रहेगा।
प्रश्न. टेलीकॉम कंपनियों की सेवा प्रदाता कंपनियां यथा एयरटेल, वोडाफोन
आदि उपभोक्ता को कुछ अनावश्यक सेवा देने के नाम पर पैसे काट लेती है,
क्या इसपर नियंत्रण के लिए कानून है।
उत्तर.
टेलीकॉम कंपनियों द्वारा उपभोक्ताओं के दुरूपयोग को लेकर कानूनी तौर पर कोई
विशेष कानून नहीं है। आईटी एक्ट के तहत कुछ सामान्य प्रावधान हैं। टेलीकॉम
कंपनियों के लिए। लेकिन बहुराष्ट्रीय कंपनियों के दबाव में कोई प्रभावकारी
कानून नहीं बनाया गया है। अमेरिका में समुदाय विशेष के पक्ष में किसी पर
मुकदमा कर सकते हैं फिर आपको करोड़ों रूपये क्षति के रूप में दिए जा सकते हैं
लेकिन इस तरह का कानून भारत में नहीं है जिससे कि कानून के तहत प्रभावकारी कदम
उठाया जा सके।
प्रश्न. न्यू मीडिया पर लोग एमएमएस या अश्लील सामग्री भी परोस देते
हैं, अपराध को छिपाने के लिए नामोनिशान मिटा दिया जाता है, पुलिस को
अपराधी तक पहुँचना एक चुनौती भरा कदम होता है, इस संदर्भ में आपकी
टिप्पणी।
उत्तर.
आज प्रयोक्ता द्वारा अश्लील सामग्री या गलत संदेश भेजने पर इस कानून के
द्वारा कार्रवाई हो सकती है। अगर आप अपने कंप्यूटर या मोबाइल से सारे निशान
मिटा भी दें तो सेवा प्रदाता कंपनियाँ पुलिस को जाँच प्रक्रिया के लिए सबूत के
तौर पर आपके भेजे संदेश को उपलब्ध करा देता है इसीलिए आप यह मानकर चलें कि
यहॉं सिर्फ आभासी दुनिया नहीं है अपितु यथार्थ में कानूनी दांवपेंच में फँस
सकते हैं।
प्रश्न. साइबर कानून को आम प्रयोक्ता तक पहुँचाने के लिए सरकार क्या
जागरूकता अभियान चला रही है।
उत्तर.
साइबर कानून के तहत साइबर टैरोरिज्म, साइबर स्टॉकिंग आदि को समाहित कर लिया
गया है। साइबर अपराधों को लेकर सामाजिक जागरूकता है ही नहीं। दुर्भाग्यपूर्ण
बात है कि सरकार के पास भी इन चीजों को लेकर जागरूकता दिलाने की कोई
महत्वपूर्ण प्राथमिकता नहीं। लिहाजा जागरूकता के लिए न ही कोई बजट होते हैं
जिससे कि जागरूकता के लिए कोई कार्यक्रम आयोजित करायी जा सके ताकि आम जनता या
आम प्रयोक्ता, जो उपयोग कर रहे हैं, वे कानूनी प्रक्रिया से वाकिफ हो सकें।
इसके लिए हमारे सांसदों के दिमाग में यह बात आनी चाहिए कि समाज को इसकी जरूरत
है। जबतक वे इस बात को नहीं समझेंगे तबतक वे सरकार पर दबाव नहीं बना सकेंगे।
प्रश्न. पीसीआई का गठन तब हुआ था जब सिर्फ प्रिंट मीडिया अस्तित्व में
था और टीवी, रेडियो सरकारी नियंत्रण में। आज न्यू मीडिया की लोकप्रियता
को देखते हुए क्या भारतीय मीडिया परिषद बनाकर न्यू मीडिया को भी समाहित
कर लिया जाना चाहिए।
उत्तर.
नए मीडिया, नए तौर-तरीके और नए प्लेटफार्मस का खुले हाथों से अभिनंदन किया
जाए, लेकिन फिलहाल हो नहीं रहा है। समूचे मीडिया प्रिंट, इलेक्ट्रानिक हो या
इंटरनेट हो, इन सभी को एक संस्था के तहत लाई जानी चाहिए चाहे वह पीसीआई को
खत्म करके हो या अन्य प्रकार से।
प्रश्न. क्या प्रेस कौसिंल ऑफ इंडिया को और भी कानूनी संरक्षण दिया जाना
चाहिए।
उत्तर.
मुझे लगता है कि काफी हदतक भारत प्रायोगिक कानून के तौर पर उसके हाथ मजबूत
नहीं किए गए हैं तो आवश्यकता है कि जो कानून है पीसीआई के लिए, उसमें संशोधन
करने की जरूरत है। आपको जबतक शक्तियाँ नहीं देगें, वैधानिक अधिकार नहीं देगें,
उसकी क्षमता का बढाएँगे नहीं, तबतक मुझे नहीं लगता है कि कोई प्रमुख अर्थपूर्ण
भूमिका अदा कर पाएगा।
प्रश्न. आज मीडिया नैतिकता का भूलकर बाजारीय व्यवस्था का अंग बनता जा
रहा है तो किसप्रकार की आचारसंहिता बनाई जानी चाहिए।
उत्तर.
आचार संहिता बनाने की अवधारणा अच्छी है लेकिन मुझे नहीं लगता कि आचार संहिता
को प्रभावकारी ढंग से लागू किया जाता है। सेल्फ रेग्यूलेशन भारत में आजतक
नाकाम रहा है। भारत वर्ष में जब डंडा चलता है या बल का प्रयोग किया जाता है या
कानून की लाठी चलती है। जबतक लोगों के हृदय में यह एहसास नहीं होगा कि मैं ये
करूँगा और इस गतिविधि के ये परिणाम होंगे। सेल्फ रेग्यूलेशन पर विश्वास
नहीं करते तो ये कहाँ तक कामयाब होगा।
प्रश्न. पत्रकार टीआरपी के चक्कर में अपनी नैतिकता को भूलाकर सिर्फ
बाजारीय प्रणाली का वाहक बनते जा रहे हैं, इस संदर्भ में आप क्या कहना
चाहेंगे।
उत्तर.
पत्रकार भारतीय समाज व आर्थिक विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते
हैं लेकिन वो महत्वपूर्ण पत्रकार समाज के प्रति अपना जिम्मेवारी तो समझें वह
जो लिख रहा है उसका प्रभाव लोगों पर क्या हो रहा है। जहाँ तक हो सके
पत्रकारों को नैतिक मूल्यों को बचाए रखें। हाल ही से पत्रकारिता में
व्यावसायिकता ज्यादा आ गई है। पत्रकार - पत्रकारिता को मुख्य उद्देश्य न
बनाते हुए कुछ और चीजों के लिए ध्यान केंद्रित करते नजर आने लगे हैंए मुझे
लगता है कि जब तक हम नैतिकता के रास्ते पर वापस नहीं मुडेंगे शायद हम अपनी
मुकाम को हासिल नहीं कर पाएँगे।
प्रश्न. क्या न्यू मीडिया को राज्य सत्ता के अंतर्गत लिया जाना
चाहिएए इस सन्दर्भ में आपकी प्रतिक्रिया।
उत्तर.
मैं मानता हूँ कि किसी भी व्यक्ति को संपूर्ण अधिकार मौजूद नहीं होते हैं। ये
कहना कि न्यू मीडिया पर पूरा सरकार का नियंत्रण होए या पूर्णतया मुक्त रहे,
ये दोनों गलत है। कहीं न कहीं सामंजस्यता तो बिठाना ही होगा। मुझे लगता है कि
सरकार न्यू मीडिया को अपने शिकंजे में रखना चाहती है। चीन ने तो गूगल को
प्रतिबंधित कर दिया। जैसे-जैसे समय गुजरेगा सरकार न्यू मीडिया पर ज्यादे से
ज्यादे नियंत्रण रखना चाहेगी।
प्रश्न. चीन में जिस प्रकार गूगल को प्रतिबंधित किया गयाए क्या भारत में
भी ऐसा कुछ हो सकता है।
उत्तर.
यहाँ की सरकार एक स्वतंत्र राष्ट्र की सरकार है। इसको पूरा अधिकार है कि
किसी को प्रतिबंधित करना चाहे तो कर सकता है। अब तो विशेष रूप से ब्लॉगिंग
इंटरनेट सर्फिंग पर कानूनी शिकंजा लगा दी गई है। सरकार पूरी तरह से ब्लॉग को
या किसी भी संस्था को चाहे वह गूगल हो या कोई अन्य, को प्रतिबंधित कर सकती
है लेकिन इसके लिए उसे आधार ढूँढने पड़ेंगे। ठोस तर्क के आधार पर ही वह
प्रतिबंधित कर सकता है।
प्रश्न. साइबर कानून को आम जनता तक कैसे पहुँचाया जा सकता है।
उत्तर.
आज साइबर क्राइम इतनी तीव्र गति से बढ रहा है लेकिन दुर्भाग्य से इस कानून के
बारे में लोगों में जागरूकता बढी नहीं है। इसके लिए सरकार की भी प्राथमिकता
में नहीं है। हमारे जो सांसद हैं उनकी मानसिकता को बदलने की आवश्यकता हैए वे
जब तक इस बात को नहीं समझेंगे तब तक वे सरकार पर दबाव नहीं बना सकेंगे। जहाँ
तक रही बात आम जनता तक इसे पहुँचाने की तो इसे इंटरनेट की बजाय मोबाइल के जरिए
साइबर कानून की जानकारी का संदेश देकर सामाजिक जागरूकता लायी जा सकती है
क्योंकि मोबाइल की पहुँच गाँवों तक हो गई है। साइबर कानून की जागरूकता अभियान
से हम समाज में पनप रहे नए प्रकार की अपराधों पर अंकुश लगा सकते हैं।