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कविता

राखी हिंदुवानी हिंदुवान को तिलक राख्यौ

भूषण


राखी हिंदुवानी हिंदुवान को तिलक राख्यौ
अस्मृति पुरान राखे वेद धुन सुनी मैं।
राखी रजपूती राजधानी राखी राजन की
धरा मैं धरम राख्यौ ज्ञान गुन गुनी मैं।
भूषन सुकवि जीति हद्द मरहट्टन की
देस देस कीरत बखानी तव सुनी मैं।
साहि के सपूत सिवराज शमशीर तेरी
दिल्ली दल दाबि के दिवाल राखी दुनी मैं ।।


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हिंदी समय में भूषण की रचनाएँ