ता दिन अखिल खलभलैं खल खलक में,
जा दिन सिवाजी गाजी नेक करखत हैं।
सुनत नगारे के अगा्रे तजि अरिन के,
दारगन भाजत न दार परखत हैं।
छूटे बार बार छूटे बारन ते लाल देखि,
भूषण सुकवि बरनत हरखत हैं।
क्यों न उत्पात बैरिन के नैरिन में,
कारे घन उमरि अंगारे बरखत हैं।।