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कविता

प्रेतिनी पिसाचरु निसाचर निसाचरिहू

भूषण


प्रेतिनी पिसाचरु निसाचर निसाचरिहू,
मिलि मिलि आपुस में गावत बधाई हैं।
भैरो भूत-प्रेत भूरि भूधर भयंकर से,
जुत्थ जुत्थ जोगिनी जमात जोरि आई हैं।
किलकि किलकि के कुतूहल करति काली,
डिम-डिम डमरू दिगंबर बजाई हैं।
सिवा पूछें सिव सों समाज आजु कहाँ चली,
काहु पै सिवा नरेस भृकुटी चढ़ाई हैं।।


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