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कविता

साजि चतुरंग सैन अंग मैं उमंग धारि

भूषण


साजि चतुरंग सैन अंग मैं उमंग धारि
सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत है।
भूषण भनत नाद बिहद नगारन के
नदी-नद मद गैबरन के रलत है।
ऐल-फैल खैल-भैल खलक में गैल गैल
गजन की ठैल-पैल सैल उसलत है।
तारा सो तरनि धूरि-धारा में लगत जिमि
थारा पर पारा पारावार यों हलत है।।


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हिंदी समय में भूषण की रचनाएँ