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कविता

चकित चकत्ता चौंकि चौंकि उठै बार बार

भूषण


चकित चकत्ता चौंकि चौंकि उठै बार बार,
दिल्ली दहसति चितै चाहि खरकति है।
बिलखि बिलात बिलखात बीजापूरपति,
भिरत फिरंगिन की नारी फरकति है।
थरथर काँपत कुतुबसाही गोलकुंडा,
हहरि हवसभूप भीर भरकति है।
राजा सिवराज के नगारन की धाक सुनि,
केते पातसाहन की छाती धरकति है।।


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हिंदी समय में भूषण की रचनाएँ