रोग की पुकार अपने लिए कान ढूँढ़ती
पहुँची थी तुम तक
और मर्ज को मलहमी नुस्खे की तलाश थी
मैं तुम्हारे पास तुम्हें तुम जानकर नहीं आया था
जान लेता तो देर के लिए कोसता खुद को।
और तुम?
प्रेम में मन की चिकित्सिका हो गई हो तुम,
अंतिम निर्णय पास सुरक्षित रख लेती हो!