hindisamay head


अ+ अ-

कविता

सफाई
स्कंद शुक्ल


कालिख धोने का कायदा
सीखते-सीखते सीखता है आदमी
कि कितने कम पानी में
और कम मेहनत में
कितनी ज्यादा गंदगी को
रगड़ कर वह खुद से छुड़ा पाता है।
सफाई करने की कला यह
माँजने की सलीकेदार शैली
पानी से खेलते-खिलखिलाते बालकवि को आते-आते आती है
कविता कैफियत की किफायत का नाम है
यह जानने के लिए उसे जर्राह बनना पड़ता है जिंदगी का
जब तक वह खून से सने हाथ धोने बेसिन तक पहुँचता है
छूटता है बरसों से रुका पानी वह
एक पिच्च की साबुनी आवाज होती है और जिंदगी गुजर जाती है।


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में स्कंद शुक्ल की रचनाएँ