hindisamay head


अ+ अ-

कविता

देवल गिरावते फिरावते निसान अली

भूषण


देवल गिरावते फिरावते निसान अली,
ऐसे डूबे राव राने सबै गये लबकी।
गौरा गनपति आप औरंग को देखि ताप,
आपने मुकाम सब मारि गये दबकी।
पीरा पयगंबरा दिगंबरा दिखाई देत,
सिद्ध की सिधाई गई रही बात रबकी।
कासीहू की कला गई मथुरा मसीत भई,
सिवाजी न होतो तो सुनति होत सबकी॥
आदि की न जानो देवीदेवता न मानो,
साँच कहूँ सो पिछानो बात कहत हौं अबकी।
बब्बर अकब्बर हिमायूँ हद्द बांधि गए,
हिंदू औ तुरक की कुरान बेद ढबकी।
इन पातसाहन में हिंदुन की चाह हुती,
जहाँगीर साहजहाँ साख पूरैं तबकी।
कासीहू की कला गई मथुरा मसीत भई,
सिवाजी न होतो तो सुनति होत सबकी॥
कुंभकर्न औरंग को औनि अवतार लैकै,
मथुरा जराइकै दुहाई फेरी रब की।
खोदि डारे देवी देव देवल अनेक सोई,
पेखि निज पानिप तें छूटी माल सबकी।
भूषण भनत भाजे कासीपति बिस्वनाथ,
और का गिनाऊँ नाम गिनती में अबकी।
दिल में डरन लागे चारों बर्न ताही समै,
सिवाजी न होतो तो सुनति होत सबकी॥


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में भूषण की रचनाएँ