"कहाँ है रैफरी? मुकाबला कब होगा?" हाथी चिंघाड़ा।
दर्शक गोल घेरा बनाए मुकाबला देखने के लिए जुटे हुए थे। हाथी की चिंघाड़ सुन कर
सब चार कदम पीछे हट गए। इतनी भीड़ कभी नहीं हुई थी। अब तक हुए मुकाबलों में
हाथी ही जीत रहा था। लेकिन इस बार हर कोई चुप था। दंगल के शौकीन कुछ भी कहने
से बच रहे थे। हाथी अब तक बैल, दरियाई घोड़ा, भालू, सियार, गधा और जिराफ तक को
पछाड़ चुका था।
बंदर फुसफुसाया - "अब तक हाथी ही दूसरों को चुनौती देता था। लेकिन पहली बार
किसी ने उसे चुनौती दी है।" लंगूर ने हामी भरते हुए कहा - "यार। चुनौती और
किसी ने नहीं, उस चुलबुली चींटी ने दी है, जो हाथी की हल्की सी फूँक से कोसों
दूर जा गिरेगी। लेकिन चींटी है कहाँ? मुझे लगता है उसने दंगल शुरू होने से
पहले ही हार मान ली।"
बंदर ने जोर देकर कहा - "कैसी बात करते हो। चींटी ने ही चुनौती दी है और वह
मुकाबला शुरू होने से पहले ही हार मान लेगी!" तभी चिंपैजी ने सीटी बजाई। वह
बोला - "दोनों आमने-सामने हैं। मैं मुकाबला शुरू करने के लिए उलटी गिनती शुरू
कर रहा हूँ। दस, नौ, आठ, सात..."
हाथी फिर चिंघाड़ा - "मैं तो कब से सामने खड़ा हूँ। लेकिन वह पिद्दी-सी चींटी है
कहाँ?" चिंपैजी हथेली आगे बढ़ाते हुए चिल्लाया - "ये रही चींटी। अरे! हाँ। यह
कुछ कहना चाहती है। दर्शकों के शोर में तुम्हें कुछ सुनाई भी नहीं देगा। मैं
इसे तुम्हारे कान के पास ला रहा हूँ।" यह कहकर चिंपैजी ने अपनी दाएँ हथेली
हाथी के कान से सटा दी।
शोर बढ़ने लगा। बढ़ता ही गया। रैफरी सीटी बजाता ही रहा। सीटी की आवाज दर्शकों के
शोर में दब गई। पहले हाथी ने सिर झुकाया। दो कदम पीछे हटा। बाएँ ओर मुड़ा। जिस
दिशा से आया था, उसी ओर चल दिया। दर्शकों के बीच से आवाज आई - "लगता है चींटी
ने हाथी के कान में काट लिया।"
दूसरा बोला - "चींटी ने हाथी से कुछ मँगवाया है। वह लाता ही होगा।"
चिंपेजी चींटी को अपने कान के पास ले गया। चींटी ने सारा किस्सा चिंपेजी को
बता दिया। चिंपेजी हँसते हुए सभी को चुप होने का इशारा करने लगा। दर्शक थे कि
चुप होने का नाम ही नहीं ले रहे थे। अब गाय चिल्लाई - "अरे! चुप भी होते हो कि
नहीं। जरा हम भी तो सुने कि मुकाबला क्यों रुक गया?" रैफरी ने जोर से सीटी
बजाते हुए कहा - "अब मुकाबला नहीं होगा।"
"मुकाबला नहीं होगा! यह क्या बात हुई! इस चींटी ने हाथी के साथ क्या किया?"
डाल पर बैठा कौआ काँव-काँव करने लगा। चिंपेजी ने जवाब दिया - "चींटी ने हाथी
के साथ कुछ नहीं किया। हाँ, उसके कान में जरूर कुछ कहा।"
"कहा! ऐसा क्या कह दिया कि हाथी मैदान छोड़कर चला गया?" लंगूर बोला। "बताता
हूँ। लेकिन तुम सब बताने दोगे तभी न। पहले चुप तो हो जाओ।" चिंपेजी ने कहा। अब
सब साँस रोककर चिंपेजी का मुँह ताकने लगे।
चिंपेजी ने बताया - "चींटी ने हाथी से बस इतना कहा कि तुम बहुत ताकतवर हो।
लेकिन दूसरों में भी कुछ न कुछ खूबियाँ हैं। मुझे ही लो। मैं तुम्हारे पैर में
काट सकती हूँ। लेकिन क्या तुम मेरे पैर में काट सकते हो? जरा मेरे पैर में काट
कर दिखाओ तो जानूँ। बस! चींटी की यह बात सुनकर हाथी अपना-सा मुँह लेकर रह गया।
वह कुछ बोल नहीं पाया। चुपचाप चला गया।" दर्शक हँसने लगे। शोर मचने लगा। चींटी
बचते-बचाते मैदान से बाहर चली गई। अब हाथी किसी को चुनौती नहीं देता।