इतिहासकार रोमिला थापर लिखते हैं कि 'अनेक यूरोपवासियों के मन में भारत के नाम
से महाराजाओं, सँपेरों और नटों की तस्वीर उभरती रही है।' आजादी के बाद
जुआरियों, मदारियों का देश कहे जानेवाले भारत की ढेर सारी समस्याएँ व आभ्यंतर
उलझनों के बावजूद द्रुततर विकास के प्रत्ययों के संदर्भ में दुनिया हमें यह
समझने लगी है कि अब जल्द ही यह विकसित देशों की श्रेणी में गिने जाने लगेगा।
क्योंकि हाल ही में वैश्विक अर्थव्यवस्था में अमरीका व उसके सहयोगियों के
अनावश्यक वर्चस्व को चुनौती देने के लिए बनी ब्रिक (ब्राजील, रूस, भारत और
चीन) देशों की बैठक में विश्व आर्थिक संकट के उपाय पर गहन विचार-विमर्श किया
गया। अमरीका की वित्तीय कंपनी गोल्डमैन सैच के अर्थशास्त्री 'जिम ओ नील' ने
अपनी रिपोर्ट 'ड्रिमिंग विथ ब्रिकः ए पाथ टू 2050' में कहा कि वर्ष 2050 तक
भारत व चीन विश्व में निर्मित सेवाओं तथा वस्तुओं के अग्रिमकर्ता देश होंगे और
इनकी अर्थव्यवस्था एक-दूसरे की पूरक होंगी। 'प्रतियोगिता दर्पण' पत्रिका के
अनुसार सैच की दूसरी रिपोर्ट में भारत की विकास क्षमता का आकलन प्रकाशित किया
गया। 'इंडिया राइजिंग ग्रोथ पोटेंशियल' में उद्घृत किया गया है कि 'विश्व में
भारत का प्रभाव अनुमान से अधिक होगा। शोध तथा विकास की वर्तमान गतिविधियों से
भारत में एक संपन्न मध्यम वर्ग का विकास होगा, भारत में 2050 तक 700 मिलियन
जनसंख्या शहरों में होगी, क्योंकि वर्तमान में विश्व के 30 अति विकासशील नगरीय
क्षेत्रों में से 10 भारत में है। वर्ष 2009 में भारत का सकल राष्ट्रीय उत्पाद
3528 बिलियन डॉलर था जो कि रूस और ब्राजील के सकल राष्ट्रीय उत्पाद से कहीं
ज्यादा थी। वर्ष 2010 तक भारत का जीडीपी चार गुणा बढ़ जाएगा तथा 2050 तक भारत
की अर्थव्यवस्था अमरीका की अर्थव्यवस्था से आगे निकल जाएगी।' हालाँकि हमारे
कुछ चिंतक मित्रों को यह बुरा भी लगेगा कि आखिर भारत की बजाय इंडिया की ओर
क्यों देखा जा रहा है, उन मित्रों को यह बताना चाहते हैं कि बहुत से क्षेत्रों
में तीव्रता से विकास के कारण ही हमारा सिर ऊँचा है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल
वर्ष 2009 की रिपोर्ट को देखें तो हम पाएँगे कि 180 देशों की सूची में भारत का
84 वाँ स्थान है। इसका अर्थ है कि सूची में भारत से नीचे देशों की संख्या 96
है। तात्पर्य यह है कि 96 देशों में भ्रष्ट्राचार का स्तर भारत से अधिक है।
2008 में भारत का स्थान 85वाँ था। अमरीकी पत्रिका टाइम ने वर्ष 2010 में विश्व
के सर्वाधिक प्रभावशाली 100 हस्तियों में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, क्रिकेटर
सचिन तेंदुलकर, नोबेल विजेता अमर्त्य सेन सहित 09 भारतीय हस्तियों को शामिल
किया है। अमेरिका की वाणिज्यिक पत्रिका फोर्ब्स ने वर्ष 2010 की ग्लोबल-2000
कंपनियों की सूची में भारत की रिलायंस इंडस्ट्रीज लि., भारतीय स्टेट बैंक,
इंडियन ऑयल, एनटीपीसी, टाटा स्टील, लार्सन एंड टुब्रो, सेल सहित 56 कंपनियों
को शामिल किया है जबकि पिछले वर्ष इस सूची में 47 भारतीय कंपनियों ही थी। इसी
प्रकार फोर्ब्स ने दुनिया की कमाऊ दस क्रिकेटरों की सूची जारी की जिसमें 05
भारतीय क्रिकेटर (महेंद्र सिंह धोनी, सचिन तेंदुलकर, युवराज सिंह, राहुल
द्रविड़, सौरभ गांगुली) हैं। इस सूची में भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान महेंद्र
सिंह धोनी शीर्ष स्थान पर हैं। भारत दुनिया का सिरमौर इसलिए भी है कि यहाँ की
प्रतिभा दूसरे देशों में जाकर वहाँ की अर्थव्यवस्था में अपनी महत्वपूर्ण
भागीदारी अदा करते हैं। एक अध्ययन के मुताबिक अमेरिका में 12 फीसदी वैज्ञानिक,
38 फीसदी डॉक्टर व 36 फीसदी इंजीनियर व नासा में 10 में से 4 भारतीय हैं।
आजादी के बाद हम कहाँ हैं? का अवलोकन करने के उपरांत हम पाते हैं कि
कृषिप्रधान देश होने के कारण हमने अमरीकन सोसायटी ऑफ एग्रोनोमी की तर्ज पर
इंडियन सोसायटी ऑफ एग्रोनोमी के तहत 1958 में पहली बार 120 लाख टन गेहूँ की
उपज में 50 लाख टन की वृद्धि से हरित क्रांति का बीजारोपण हुआ, 1960 के दशक
में भारतीय कृषि वैज्ञानिकों ने मेक्सिकन गेहूँ बीज का संकरण कर उत्पादकता में
गुणात्मक वृद्धि की। आज हम धान, गेहूँ उत्पादन में हम सक्षम हैं। उत्पादन
अत्यधिक मात्रा में होने के कारण ही अनाज गोदामों में सड़ रहे हैं। यह अलग बात
है कि गरीब वर्ग असमान वितरण व्यवस्था व कालाबाजारी के कारण दाने-दाने को
मोहताज हो रहे हैं। विश्व पटल पर भारत का सिर इसलिए ऊँचा है कि वह अपने बल पर
खड़ा बहुत बड़ा जनतंत्र है। जनतांत्रिक व्यवस्था को हम ने पूरी तरह से कायम रखा
है; मानवाधिकारों को यहाँ सर्वाधिक महत्व दिया जा रहा है। भारत की लोकतांत्रिक
व्यवस्था की ही वजह से आम आवाम भी अपनी माँग व अधिकार को राज्य के समक्ष
पुख्ता से रख पाता है। वर्ना कई देशों में हम हुक्मरानों की तानाशाही को दख
सकते हैं, कई देशों को तो सैनिक शासन के आग की लपटों में झुलसना आम बात है।
विकास का एक और मुख्य क्षेत्र है - प्रौद्योगिकी। उस में भी हम सक्षम हो चुके
हैं विशेषकर अंतरिक्ष विज्ञान एवं प्रौद्यागिकी में। भारत के अंतरिक्ष
अनुसंधान और तकनीकी क्षेत्र में तरक्की करने में डॉ. होमी जहांगीर भाभा और डॉ.
विक्रम साराभाई के दूरदर्शिता का कमाल था जो कि 1950 में 'एटमी ऊर्जा विभाग'
के रूप में फलीभूत हुआ। 15 अगस्त 1969 को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन
(इसरो) गठित होने के उपरांत भारत ने 'राष्ट्रीय सम्मान' और 'स्वाभिमान' के लिए
भारतीय वैज्ञानिकों ने 1975 ई. में 'आर्यभट्ट' उपग्रह को अंतरिक्ष में भेजकर
बड़ी सफलता अर्जित की। रोहिणी 560, पृथ्वी, आकाश, अग्नि, नाग, त्रिशूल, एसएलवी
3 ई.,एसएलवी ई-2, एसएलवी 3 डी, एसएलवी 3डी-2, एसएलवी डी-3 की आंशिक या पूर्ण
सफलता ने भारत की धाक दुनिया में जमा दी। इसलिए तो इसरो अध्यक्ष माधवन नायर ने
स्पष्ट कर दिया है कि 'इसरो' मानव को अंतरिक्ष में भेजने की योजना पर विचार कर
रहा है। चंद्रयान-1 के साथ गया भारत का मून इफैक्ट प्रोब ने चाँद पर पानी की
मौजूदगी का ठोस प्रमाण पृथ्वी का भेजकर सिद्ध कर दिया कि 'चाँद पर भी जीवन
संभव है।' सबकुछ ठीक रहा तो 2015 तक तेजी से डिजिटल मेपिंग वाला गाँवों का
भारत अंतरिक्ष क्षेत्र में मील का पत्थर लगाने का काम करेगा। देश में श्वेत
क्रांति, पीली क्रांति के बाद सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी हम पूरी
तरह से सक्षम अवस्था की ओर जा रहे हैं। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने सैम
पित्रोदा के साथ टेक्नोलॉजी मिशन की जो रूपरेखा बनाई थी, वह आज चहुँओर
दृष्टिगोचर होता है। नैस्कोम ने तो कहा है कि 2009-10 में आईटी सेवाओं व बीपीओ
क्षेत्र के निर्यात में 5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। जहाँ 2008-09 में इस
क्षेत्र में निर्यात 47.1 अरब डॉलर का हुआ वहीं 2009-10 में 49.7 प्रतिशत
संभावित है जबकि 2010-11 में 13से 15 प्रतिशत की वृद्धि अनुमानित है। वृद्धि
की इन संभावनाओं के कारण ही नैस्कॉम का मानना है कि 2010-11 में 1,50,000 अवसर
सृजित होंगे। टेक्नोलॉजी का ही कमाल है कि डॉक्टर, वकील, अध्यापक, शोधार्थी
टेलीकांफ्रेंसिंग के जरिए अपने कार्य की गुणवत्ता को बढ़ा रहा है। कभी बैलगाड़ी
से साहूकार को अनाज देनेवाला किसान मजदूर भी ई बिजनेस करने के बारे में सोच
रहा है। सूचना प्रौद्योगिकी की लहर के रूप में हम रिक्शा चालक, दूध वाले भैया
या फिर भिखारी के हाथों में भी मोबाइल देख रहे हैं। सरकार परेशान हो रही है कि
इंडिया इतना बातूनी क्यों हो गया है? नई तकनीक इंटरनेट, फेसबुक, ट्विटर,
ब्लॉग, पोर्टल के माध्यम से अभिव्यक्ति करने में लोगों की दिलचस्पी बढ़ी है।
हालाँकि यह भी सही है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने असंगठित कर जनांदोलनों को
भी नहीं बक्शा है।
जब दुनिया वैश्विक आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहा था, यहाँ की आम आवाम जनता
इस संकट की घड़ी में भी खिलखिला रहा था। हीरोहोंडा की खरीदी के लिए महीनों
अग्रिम बुकिंग करनी पड़ती थी। बिहार में मेरे एक मित्र की बहन की शादी थी, भेंट
रूप में स्विफ्ट डिजायर गाड़ी देनी थी। बिहार में छह माह के बाद गाड़ी मिलती,
मैंने यहाँ के शोरूम से गाड़ी के बारे में पता किया तो जानकारी मिली कि छह माह
के बाद ही गाड़ी मिल सकती है जब लंबी प्रतीक्षा के बारे में पूछा कि आखिर बात
क्या है? तो शोरूम वाले का कहना था कि जितनी माँग यहाँ है उतना उत्पादन हो
नहीं पाता है इसलिए तो अग्रिम बुकिंग करानी पड़ती है।
प्रख्यात अर्थशास्त्री प्रो. सुब्रमण्यम स्वामी, जो कि हावर्ड विश्वविद्यालय
(यू.एस.ए.) में विजिटिंग फैलो हैं का कहना है कि 'भारत में आर्थिक मंदी का असर
इसलिए भी नहीं पड़ेगा क्योंकि यहाँ के लोग आय के अनुसार ही उपभोग करते हैं जबकि
अमेरिका में लोग अत्यधिक उपभोग के लिए कर्ज लेते जाते हैं, चुकता करने की
स्थिति में न होने के कारण बैंक दिवालया हो जाता है, यही कारण है कि इस बार की
मंदी 1936 की वैश्विक मंदी की पुनरावृति के रूप में देखा गया।'
यह सही है कि आज के वैश्वीकृत प्रकरण में समस्याएँ जटिल होती जा रही हैं।
परंतु जिस देश ने अपने मनोबल से, स्वप्रयत्न से आजादी हासिल की है उसको यह देश
सुरक्षित भी रख सकता है और विकसित देशों की श्रेणी में लाने के लिए भरसक
प्रयास करता रहा है और करता रहेगा हालाँकि पूर्व राष्ट्रपति डॉ. कलाम ने कहा
है कि भारत वर्ष 2020 तक विकसित राष्ट्र का दर्जा पा सकता है यदि गरीबी रेखा
से नीचे रहने वालों को शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास और रोजगार के अवसर उपलब्ध करा
दें। साथ ही इसके लिए हमें विशेष रूप से कृषि, खाद्यान्न, बिजली, परिवहन,
शिक्षा स्वास्थ्य, सूचना प्रौद्योगिकी और आत्मविश्वास पर भी ध्यान देने की
जरूरत है। उनका मानना है कि देश में तकरीबन 7 हजार गाँव हैं जिन्हें अच्छी सड़क
और परिवहन सूचना प्रौद्योगिकी के जरिए इलेक्ट्रॉनिक सुविधा और शहरों से
ऑप्टिकल फाइबर केबल तथा इंटरनेट सुविधा, शिक्षा के जरिए ज्ञान वर्द्धन, कृषि
प्रशिक्षण, क्राप्ट कला और नए उद्योगों जैसी सुविधा उपलब्ध कराने से, बैंक के
जरिए उद्योगों की शुरूआत कर आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ किया जा सकता है। वे मानते
हैं कि भारत का सकल घरेलू उत्पाद दर औसतन 8 प्रतिशत वार्षिक है। आर्थिक
विशेषज्ञों की राय है कि 22 करोड़ की जनसंख्या को गरीबी रेखा के नीचे से ऊपर
उठा दिया जाए तो हमारी सकल घरेलू उत्पाद की दर औसतन 10 प्रतिशत दस वर्षों तक
सतत रह सकती है जिससे छह हजार गाँवों में रहने वाली 70 करोड़ की आबादी को कस्बे
जैसी सुविधाएँ दी जा सकती है और शहर तथा गाँव के बीच की खाई को पाटने में पुल
का काम कर सकती है। 2001 की जनगणना के अनुसार देश की 27.81 प्रतिशत आबादी शहरी
क्षेत्रों में निवास करती है जबकि 1951 में 17.57 प्रतिशत आबादी ही शहरी थी।
इतना ही नहीं जहाँ 1951 में 5 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों की संख्या 5 थी जो
2001 में 35 हो गई। केंद्रीय सांख्यिकीय संगठन के अनुसार 2009-10 में भारतीय
अर्थव्यवस्था ने 7.4 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की है जबकि 2008-09 में वृद्धि दर
6.7 ही थी। इस प्रकार से विकास के सकारात्मक पक्षों को सकारात्मक ही कहना
पड़ेगा। हालाँकि इतनी तरक्की के बावजूद हमें यह स्वीकार कर ही लेना चाहिए कि,
चाहे इस देश में मध्य वर्ग का आकार असीमता को ही क्यों न छू गया हो, विकास के
केंद्र में अब भी समाज का वह अंतिम व्यक्ति वहीं खड़ा है। हमें केवल अब यह
प्रगति करनी है कि विकासोन्मुख योजनाएँ समाज के उसी अंतिम व्यक्ति के मद्देनजर
बने। एक ऐसे विकास नीति का कार्यक्रम, जो समाज के अंतिम व्यक्ति का हाथ पकड़ कर
अपने साथ ले चल सके। निष्कर्षतः भारत की छवि वैश्विक स्तर पर पारदर्शी और
अनुकरणीय है। भारत को किसी भी मायने में लघुतर रूप में मापना अपने पिछड़ेपन की
निशानी है।