जिन आँखिन रूप-चिन्हार भई, तिनकी नित नींद ही जागनि है। हित-पीर सों पूरित जो हियरा, फिरि ताहि कहौ कहा लागनि है। 'घनआनंद' प्यारे सुजान सुनौ, जियराहि सदा दुख दागनि है। सुख में मुख चंद बिना निरखैं, नख ते सिख लौं बिख-पागनि है।।
हिंदी समय में घनानंद की रचनाएँ