जा हित मात कौं नाम जसोदा, सुबंस कौ चंद-कला-कुलधारी। सोभा-समूह भई 'घनआनंद' मूरति रंग-अनंग जिवारी। जान महा, सहजै रिझवार, उदार विलास मैं रासबिहारी। मेरो मनोरथ हूँ बहियै, अरु हैं मो मनोरथ पूरनकारी।।
हिंदी समय में घनानंद की रचनाएँ