अति सूधो सनेह को मारग है, जहाँ नेकु सयानप बाँक नहीं। तहाँ साँचे चलैं तजि आपनपौ झिझकैं कपटी जे निसाँक नहीं। घनआनंद प्यारे सुजान सुनौ यहाँ एक ते दूसरो आँक नहीं। तुम कौन धौं पाटी पढ़े हौ लला, मन लेहु पै देहु छटाँक नहीं।।
हिंदी समय में घनानंद की रचनाएँ