अंतर मैं बासी पै प्रबासी को सो अंतर है,
मेरी न सुनत दैया आपनीयौ ना कहौ।
लोचननि तारे ह्वै सुझायो सब, सूझी नाहिं,
बूझी न परति, ऐसैं सोचनि कहा दहौ।
हौ तौ जानराय, जाने जाहु न अजान यातें,
आनंद के घन छाय छाय उघरे रहौ।
मूरति मया की हा हा! सूरति दिखैये नेकु,
हमैं खोय या बिधि हो! कौन धी लहा लहौ।।