कान्ह परे बहुतायत में, इकलैन की वेदन जानौ कहा तुम? हौ मनमोहन, मोहे कहूँ न, बिथा बिमनैन की मानौ कहा तुम? बौरे बियोगिन्ह आप सुजान ह्वै, हाय कछू उर आनौ कहा तुम? आरतिवंत पपीहन को घनआनंद जू! पहिचानो कहा तुम?
हिंदी समय में घनानंद की रचनाएँ