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कविता

मूरति सिंगार की उजारी छबि आछी भाँति

घनानंद


मूरति सिंगार की उजारी छबि आछी भाँति,
दीठि लालसा के लोयननि लैलै ऑंजिहौं।
रतिरसना सवाद पाँवड़े पुनीतकारी पाय,
चूमि चूमि कै कपोलनि सों माँजिहौं
जान प्यारे प्रान अंग अंग रुचि रंगिन में,
बोरि सब अंगन अनंग दुख भाँजिहौं।
कब घनआनंद ढरौही बानि देखें,
सुधा हेत मनघट दरकनि सुठि राँजिहौं।।


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