निसि द्यौस खरी उर माँझ अरी छबि रंगभरी मुरि चाहनि की। तकि मोरनि त्यों चख ढोरि रहैं, ढरिगो हिय ढोरनि बाहनिकी। चट दै कटि पै बट प्रान गए गति सों मति में अवगाहनि की। घनआनंद जान लख्यो जब तें जक लागियै मोहि कराहनि की।।
हिंदी समय में घनानंद की रचनाएँ