१.
दम साधे
नींद का मक्कड़ मारे
पीठ किए सिहरती
धरती लेटी है तट पर
इस स्टॉक एक्सचेंज की मुंबई में
सनातन काल से
बस इतनी दूर कि
समुद्र छू सके उसे जरा सा
या रुक जाए
लपेट ही ले एक अँकवार में
थोड़ी देर को
अपने अतल में लौटने से ठीक पहले
२.
पूर्णिमा के साथ
जलधि बढ़ आया उद्दाम
ठहरा रहा पलों पहरों युगों एकाकार
सिंधुसिक्त धरती ने नहीं देखा
फिर आकाश की ओर दृष्टि उठाकर
३.
वह ज्वार था जो उतर गया
४.
वापस गया तो
क्या क्या छोड़ गया अकूपाद
पूरी सृष्टि का मलबा
कीचड़ कादो उपालंभ
उससे कहो ले जाए
यह सब यहाँ से
यह प्रेम था समर नहीं
५.
साँझ होते ही
समुद्र सो गया अनासक्त मुँह फेर
अमावस चट्टान सी
उतरी पानी के सीने से
अथाह तली तक
काला पानी छलकता रहा थोड़ा-थोड़ा
धूसर धरती छनकती रही थोड़ी-थोड़ी
ओएनजीसी की क्रेन टिमटिमाती है बीच-बीच।