hindisamay head


अ+ अ-

कविता

खेद है

अनुराधा सिंह


खेद है
कि जब नहीं सोचना चाहती थी कुछ भी गंभीर
तब मैंने सोचा तुम्हारे लिए प्रेम

अला कूवनोव की खस्ताहाल गली में रह रही
बूढ़े आदमी की जवान प्रेमिका की तरह
असंभावनाओं से परिपूर्ण था मेरा प्रेम
मेरे सामने की दीवार
जिस पर कभी मेरे अकेले
कभी हम दोनों की तसवीर टँगी रहती है
जीवन में तुम्हारे जाने आने की सनद मानी जाएगी अब से

सड़क पर सरकार का ठप्पा लगा है
फिर भी घूमती फिरती है जहाँ तहाँ
नारे लगाती है उसी के खिलाफ
पत्थर चलाती है ताबड़तोड़
और फिर लेट जाती है वहीं गुस्ताखियों में सराबोर
मैं इस सड़क जैसी बेपरवाही और मुखालफत के साथ
इसी पर चल कर

पहुँच जाना चाहती थी तुम तक
क्योंकि अनियोजित जी सकना ही
अर्हता है प्रेम कर सकने की
अब इस प्रेम को कैसे रँगा जाए किसी कैनवास पर
क्या आस पास फैले हुए कपड़े और जूते
प्रेम की बेतरतीबी की तदबीर बन सकते हैं
या स्टेशन पर घंटों खड़ा
खराब इंजन
रुकी हुई जिंदगी में
चुक चुके प्रेम की तसवीर हो सकता है

क्षमाप्रार्थी हूँ
घिर जाना चाहती हूँ दुर्गम अपराधबोध में
कि जब नहीं था मेरे पास करने के लिए
कुछ और
मैंने किया तुमसे प्रेम।


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में अनुराधा सिंह की रचनाएँ



अनुवाद