जैवमौसमिका, भौतिक और रासायनिक पर्यावरण के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभावों
का अध्ययन है। इसमें सूक्ष्म और दीर्घ पर्यावरण दोनों ही शामिल हैं। ये प्रभाव
अनियमित, उतार-चढ़ाव या लयबद्ध प्रकृति के हो सकते हैं। इसमें पृथ्वी का
पर्यावरण और अतिरिक्त स्थलीय पर्यावरण दोनों ही शामिल हैं। यह अध्ययन सामान्य
रूप से भौतिक-रासायनिक प्रणालियों और विशेष रूप से जीवित जीवों (पौधों,
जानवरों और मनुष्य) पर हुए प्रभावों का अध्ययन होता है। इस प्रकार यह वायुमंडल
के भौगोलिक और भू-रासायनिक वातावरण, और जीवित जीव, पौधे, जानवर और मनुष्य के
बीच परस्पर संबंधों का अध्ययन है।
पौधा जैवमौसमिक अध्ययन, पौधाजीवविज्ञान से संबंध रखता है। यह स्वस्थ और
रोगग्रस्त पौधों, दोनों के विकास और वितरण पर मौसम और जलवायु के प्रभाव का
अध्ययन है। यह अध्ययन, कृषि और वानिकी उद्देश्यों से होता है। पौधे, पशु और
मानव रोगों के लिए जिम्मेदार छोटे पौधों के जीवों पर मौसम और जलवायु दोनों के
प्रभावों का इससे पता चलता है। कृषि जैवमौसमिका फसलों के विकास और उपज का
अध्ययन है। यह अध्ययन किसी क्षेत्र के वार्षिक जलवायु तत्वों के संदर्भ में
होता है। फसल-मौसम संबंध और पौधों के भौगोलिक स्थान भी इसके अंतर्गत आते हैं।
जंतु जैवमौसमिका, जानवरों पर मौसम और जलवायु के प्रभाव के अध्ययन से संबंधित
है। पशुचिकित्सा जैवमौसमिका, दूध उत्पादन और मवेशियों के प्रजनन से संबंधित
है। पक्षी जैवमौसमिका में पक्षियों के अंडे बिछाने की ताल का अध्ययन होता है।
जंतु जैवमौसमिका में कीड़ों और स्थलीय संधिपादों की शारीरिक गतिविधियों का भी
अध्ययन होता है। संधिपादों के पैर संयुक्त होते हैं। संधिपादों में रीढ़ की
हड्डी नहीं होती है। इनका शरीर खंडित होता है, इनमें बाहरी कंकाल होता है और
इनके परिशिष्ट जुड़े हुए होते हैं। कीटवैज्ञानिक जैवमौसमिका में टिड्डियों और
मलेरिया मच्छरों के प्रचुर मात्रा में बढ़ने की प्रक्रिया का अध्ययन होता है।
जैवमौसमिका की कीटवैज्ञानिक शाखा में इस अविकास के कारण हुए पौधे, पशु और मानव
रोगों के प्रकोप का भी अध्ययन होता है।
इसके अलावा, ब्रह्मांडीय जैवमौसमिका, अतिरिक्त स्थलीय कारकों, जैसे कि सौर
गतिविधिओं और ब्रह्मांडीय विकिरणों में विविधताओं, के पृथ्वी पर जीवित जीवों
पर संभावित प्रभावों का वर्णन करती है।
अंतरिक्ष जैवमौसमिका का अंतरिक्ष अनुसंधान से निकटता से संबंध है। यह चंद्रमा
और ग्रहों पर मनुष्यों और जानवरों पर अतिरिक्त स्थलीय भौतिक वातावरण के जैविक
प्रभावों का अध्ययन है। अंतरिक्ष वाहनों में और अंतरिक्ष उड़ानों के दौरान
सूक्ष्मजीव स्थितियाँ भी इसके अधिकार के तहत आती हैं। जीवाष्म जैवमौसमिका अतीत
में (करोड़ों साल पहले) पौधों, जानवरों और मनुष्यों के क्रमागत विकास और
भौगोलिक वितरण पर जलवायु स्थितियों के प्रभाव का अध्ययन है।
मानव जैवमौसमिका स्वस्थ और रोगग्रस्त व्यक्तियों पर मौसम और जलवायु के प्रभाव
का अध्ययन है। शारीरिक जैवमौसमिका स्वस्थ व्यक्तियों की शारीरिक प्रक्रियाओं
पर मौसम और जलवायु दोनों के दीर्घ और सूक्ष्म प्रभाव का वर्णन करती है।
समाजशास्त्रिय जैवमौसमिका अनुकूल और प्रतिकूल मौसम का जनसंख्या समूहों के
स्वास्थ्य, व्यवहार और सांस्कृतिक गतिविधियों पर असर का अध्ययन है। रोग
जैवमौसमिका मनुष्यों की बीमारियों से जुड़ी विभिन्न शारीरिक और रोगजनक
क्रियाओं पर मौसम और जलवायु के प्रभाव का अध्ययन है। इसमें रोग के प्रकोप की
अवधि, उसकी तीव्रता और भौगोलिक वितरण शामिल है। वास्तुकला और शहरी जैवमौसमिका
मनुष्यों के स्वास्थ्य पर घरों और शहरों में सूक्ष्मजीवों के प्रभाव का वर्णन
करता है। यह इन सूक्ष्मजीवों पर वास्तुशिल्प निर्माण और शहर नियोजन के प्रभाव
का भी वर्णन करता है। समुद्री जैवमौसमिका जहाजों पर रहने आले मनुष्यों और
जानवरों पर मौसम और जलवायु के असर का अध्ययन है। इसमें जहाजों पर मौजूद माल पर
हो रहे प्रभाव भी शामिल हैं। जलवायुअनुकूलन जैवमौसमिका तापमान, आर्द्रता, आदि
की चरम स्थितियों (जैसे उष्णकटिबंधीय या ध्रुवीय क्षेत्रों में) के अनुकूलन के
दौरान शामिल विभिन्न शारीरिक प्रक्रियाओं का अध्ययन करता है। वायु प्रदूषण
जैवमौसमिका मनुष्य पर पराग, बीजाणुयों, धूल और रासायनिक वायु प्रदूषण के
प्रभाव का अध्ययन है।
हालाँकि अमेरिका में यह बारहवीं के पश्चात चार साल के स्नातक-स्तरिय कोर्स के
रूप में पढ़ाया जाता है, भारत में जैवमौसमिका में विज्ञान-स्नातक शिक्षा अभी तक
उपलब्ध नहीं है। अगर भारत के किसी भी विश्वविद्यालय की तरफ से यह कोर्स शुरू
किया जाएगा, तो विद्यार्थियों को उपरोक्त विषयों को केवल रुचि के हिसाब से
पढ़ने के बजाय इनमें व्यवसाय के माध्यम से आजीविका कमाने का मौका मिल जाएगा।
वर्तमान परिपेक्ष में भारत में मानव जैवमौसमिका के अध्ययन की और उसमें
शोधकार्य की अत्याधिक आवश्यकता है।
मेकाट्रोनिक्स, अभ्यास, अनुसंधान और विकास के एक व्यापक क्षेत्र के रूप में
उभरा है। साथ-साथ अभियांत्रिकी में एक अकादमिक विभाग के रूप में उसने जगह
प्रशस्त कर ली है। मेकाट्रोनिक उत्पादों और प्रणालियों में आधुनिक वाहन और
विमान, होशियार घरेलू उपकरण, चिकित्सा रोबोट, अंतरिक्ष वाहन, और कार्यालय
स्वचालन उपकरण शामिल हैं।
मेकाट्रोनिक यंत्र बनाते समय, शुरुआत में, वांछित प्रणाली के बारे में जानकारी
इकट्ठी की जाती है। उदाहरण के तौर पर, उनके इच्छित कार्य, उनका प्रदर्शन,
विशेष विवरण, उस प्रणाली के अतीत का अनुभव तथा उससे संबंधित प्रणालियों का
ज्ञान। इस प्रकार प्रारूप के उद्देश्यों का इस्तेमाल करके पर्याप्त विस्तारित
तथा पर्याप्त रूप से जटिल नमूने का विकास करना मुमकिन है। जरूरी नहीं है कि यह
विस्तार और जटिलता उच्च श्रेणी के हों। यह कम और मध्यम स्तर के भी हो सकते
हैं। विश्लेषण और कंप्यूटर अनुकरण से उपयोगी जानकारी उत्पन्न होती है। यह
प्रारंभिक प्रारूप एक वैचारिक प्रारूप के रूप में काम करता है। यह तरीका
अपनाकर मेकाट्रोनिक यंत्र के प्रारूपीकरण का निर्णय लिया जाता है। इसके बाद उस
नमूने में सुधार किया जाता है। इस प्रकार, नमूने और प्रारूप की पुनरावृतीय कड़ी
का इस्तेमाल करके एक सुचारु मेकाट्रोनिक यंत्र को बनाया जाता है।