कंपनियाँ, अपने द्वारा बनाई गई वस्तुयों या अपने द्वारा दी जाने वाली सेवा की
जानकारी, अपनी वेबसाइट द्वारा देती हैं। ये सभी वेबसाइट पृष्ठभूमि में डेटा
उत्पन्न करती रहती हैं। यह डेटा कई प्रकार का रहता है - लोग कहाँ पर क्लिक कर
रहे हैं, वेबसाइट के किस भाग को वे देख रहे हैं, वेबपेज के कितने बाइट्स
उन्होंने डाउनलोड किए हैं, वगैरह। इसे 'लॉगफाइल' कहा जाता है। जैसे-जैसे वेब
की दुनिया प्रौढ़ होने लगी, निगम और उद्योग यह सुनिश्चित करने लगे कि उनकी
वेबसाइट ग्राहकों के सवालों का जवाब उन्हें प्रदान कर रही है। नतीजतन, वेबसाइट
में निवेश बढ़ने लगा। निवेश बढ़ने से कंपनियाँ यह सवाल करने लगी कि हम इतना पैसा
क्यों निवेश कर रहे हैं? क्या यह कंपनी के लिए कोई मूल्य पैदा कर रहा है? यहाँ
से वेब एनालिटिक्स की शुरुआत हुई।
इस प्रकार से वेब एनालिटिक्स, वेब डेटा की माप, उसका संग्रह, उसका विश्लेषण और
उसका लेखन तथा प्रेषण है। इसका उद्देश्य वेब उपयोग को समझना और अनुकूलित करना
है। इसका मतलब इसके द्वारा यह जानकारी इकट्ठा की जा रही है कि लोग कहाँ क्लिक
कर रहे हैं, वे कौन-सी जानकारी देख रहे हैं, इसके बाद वे कहाँ जा रहे हैं
(कौन-सी दूसरी लिंक पर जा रहे हैं) वगैरह। इसके बाद इस डेटा का विश्लेषण हो
रहा है। विश्लेषण के बाद उसकी रिपोर्ट बन रही है। यह रिपोर्ट वापिस उद्योग की
विपणन टीम को दी जाती है और उन्हें बताया जाता है कि वेबसाइट के जरिये
उन्होंने यह जानकारी हासिल की है।
एक वेब विश्लेषक का काम यह समझना है कि वेबसाइट का उपयोग कैसे किया जा रहा है।
उसके बाद उसका काम होता है एक अच्छी रिपोर्ट तैयार करना। इस रिपोर्ट को तैयार
करने के लिए आमतौर पर वह एक्सेल, पावर पॉइंट या टैबलिउ जैसे किसी अच्छे
विजुअलाइजेशन सॉफ्टवेर का इस्तेमाल करता है। एक अच्छा वेब विश्लेषक अपनी
रिपोर्ट में यह सिफारिशें भी देता है कि किस चीज को बदलने की जरूरत है। ऐसा
करने के लिए उसे कंपनी के विभिन्न विभागों के साथ काम करना पड़ता है। उसकी
भूमिका किसी एक प्रकार के कार्य या किसी एक विभाग तक ही सीमित नहीं है।
जैसे-जैसे वेब बढ़ा, वैसे-वैसे विपणन प्रणालियों में भी बढ़ोतरी हुई।
इंस्टाग्राम, फेसबुक, ट्विटर और पिंटरेस्ट सामाजिक वाणिज्य के माध्यम बन गए।
पत्र-पत्रिकाएँ, रेडियो और टेलीविजन 'ऑफलाइन' संप्रेषण के माध्यम बन गए।
सामाजिक और ईमेल संप्रेषण ने जोर पकड़ लिया। 'सर्च इंजन मार्केटिंग' व्यापार का
एक बढ़ा हिस्सा बन गई जिसमे विपणन का माध्यम गूगल, बिंग और याहू ने ले लिया।
अपनी वस्तुओं और सेवाओं की सही और सामयिक जानकारी के लिए व्यापारी 'सर्च इंजन
ऑप्टिमाइजेशन' का उपयोग कर 'ऑनलाइन' विपणन का सहारा लेने लगे। ग्राहकों को
'ऑनलाइन' लक्षित किया जाने लगा और 'सीधी बिक्री' का महत्व बढ़ गया। वेबसाइट अभी
भी केंद्रीय है, लेकिन वह बड़ी पहेली का महज एक टुकड़ा है।
इन सभी प्रणालियों के जुड़ने से वेब विश्लेषक के काम में विस्तार आ गया। ये सभी
प्रणालियाँ एक साथ बुनकर 'डिजिटल प्रणाली' बन गए हैं। इससे वेब एनालिटिक्स का
क्षेत्र, डिजिटल एनालिटिक्स का क्षेत्र बन गया। बहुत सारे उद्योग आज भी इसे
वेब एनालिटिक्स कहते हैं, और उनके पास वेब विश्लेषण के लिए वेब एनालिटिक्स का
अलग से विभाग है। लेकिन बहुत सारे उद्योगों ने इसे डिजिटल एनालिटिक्स के नाम
से बुलाना शुरू कर दिया है। कंपनियाँ इन शब्दों को परस्पर विनिमय कर प्रयोग
करती हैं।
इसीलिए, डिजिटल एनालिटिक्स उन सब प्रकार की डिजिटल प्रणालियों के डेटा का
विश्लेषण है जिनमे वेबसाइट भी शामिल है। इसमें वह सब डेटा शामिल है जो वेब खोज
से प्राप्त है, या सामाजिक मीडिया, ईमेल, और मोबाइल के जरिये मिलता है। इससे
डिजिटल विपणन की पूरी तसवीर बनती है।