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कविता

प्रमाणपत्र
निशांत


पिता जी पेंशन के लिए
जिंदा रहने का प्रमाणपत्र लेते रहे
जब तक जिंदा रहें

मैं जिंदा हूँ
इसे बतलाने के लिए
बार बार पॉकेट से निकालकर
दिखलाता हूँ अपना फोटो प्रमाणपत्र
सब मान लेते हैं - मैं जिंदा हूँ !
वही हूँ, जो फोटो में हूँ !

रात के अकेले में
वह मेरे ऊपर शक करता है
माँगता है मुझ से
मेरे जिंदा होने का प्रमाणपत्र
मेरे मनुष्य होने का प्रमाणपत्र

वह कागज के टुकड़ों को नहीं मानता
मेरी नब्ज नहीं टटोलता
मेरा चेहरा भी नहीं देखता
वह हर रात सीधे मेरी आँखों में झाँकता है और
हर रात मुझे मृत घोषित करता है


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