hindisamay head


अ+ अ-

कविता

अंदर कोई नहीं है

निशांत


किसी बात का इतना सरलीकरण ठीक नहीं
कुछ भी कर के देखने के लिए
नहीं करना चाहिए कुछ भी

एक छोटे से कस्बे से उड़ते उड़ते एक कागज
सुप्रीम कोर्ट में जाकर गिरता है
न्याय एक भ्रम है

आजकल ज्ञान की आँधी से
भ्रम की टांटी और मजबूत होती है
अहंकार उत्पन्न करता है ज्ञान

दो लोगों के बीच प्रेम
सच और झूठ की तरह है
है भी और नहीं भी

क्या करेगा कोई ऐसे समय में
किसका दरवाजा खटखटाएगा
लोग घरों में है और बाहर बोर्ड टँगा है
अंदर कोई नहीं हैं।


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में निशांत की रचनाएँ